हरेक मोड़ पर रहनुमा था, सही था
मेरी ज़िन्दगी में जो इक अजनबी था.
उसी करम से मैं कायम हूँ अब भी
वरना तो मेरा भरोसा नहीं था
तसव्वुर उसी का मेरी ज़िन्दगी है
अभी दिल की जानिब यहीं तो कहीं था
उसके बिना क्या बताऊँ मैं तुमको
मेरा लम्हा-लम्हा तो जैसे सदी था
हरेक शक्ल उसकी बहुत ही हसीं थी
कभी था वो नश्तर, कभी वो कली था
"सिया' उसकी नज़रों में जादू है माना
मेरा हो गया वो जो कल अजनबी था.
सिया
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