औरत को काँटों का बिस्तर अक्सर चढ़ना पड़ता है
मन ही मन अरमान हज़ारों लेकिन घुटना पड़ता है
कब समझेगा कोई आख़िर उसके मन की भाषा को
काश समझ लो मन ही मन क्यूं उसको रोना पड़ता है
दिल में इक औरत के अक्सर प्यार,वफ़ा,जज्बात भी हैं
लेकिन उसको अपने दिल का राज़ भी कहना पड़ता है
माना मैंने हिस्से के मैं सुख-दुःख आख़िर भोग चुकी
एक नयी सी भोर भी होगी, वक़्त को मुड़ना पड़ता है
तुने तो करली कुर्बानी, अपने आंसू पोंछ भी ले
देख "सिया" को आंसू से ये दामन धोना पड़ता है
सिया
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