Tuesday 26 April 2011

हमदम ना हमनवा

ना तो हमदम ना हमनवा की तरह
वो मिला मुझको आसमान की तरह

हमने महबूब उसको माना मगर
पेश वो आया दो जहाँ की तरह

अब मोहब्बत गुनाह सी होगी
बात निकली हैं दास्ताँ की तरह

ग़म जिसे आप लोग कहते है
साथ होते है कारवां की तरह

जिसके लफ्जों से फूल खिलते हैं
वो सिया क्यूं हैं बेजुबान की तरह

सिया

No comments:

Post a Comment