ना कुरेदो मेरे जख्मो को ये नासूर हुआ
तुझको माना था मसीहा ये कसूर हुआ
वक्त मरहम है हर इक दर्द का सुना मैंने
हिज्र का गहरा ज़ख्म सहने पे मजबूर हुआ
क्या कमी थी मेरी उल्फत में बताना तो था
क्यों निगाहों से गिराया .दिल से यू दूर हुआ
आइना _दिल में सजा रक्खी थी तस्वीर तेरी
क्या हुआ क्यूं ये मेरा ख़्वाब ऐसे ही चूर हुआ
तेरी बातो से क़यामत से गुज़रती दिल पर
क्यों 'सिया' दे दुहाई ये दुनिया का दस्तूर हुआ
No comments:
Post a Comment