दिल हैं पोशीदा बहोत मिसमार हैं
आजकल चेहरे ही बस बाज़ार हैं
खुशबुएँ भी इस धुंए ने छीन लीं
फ़ूल गुलशन में हैं पर लाचार हैं
हाँ मिलावट ही मिलावट हर तरफ
हर तरफ बस आदमी बेज़ार हैं
एक सच्चा आदमी अनशन पे है
अब यहां बदलाव के आसार हैं
हम गरीबों के लिए कुछ भी नहीं
ख़ुद की ख़ातिर अहलेज़र दिलदार हैं
एक व्यापारी ने मुझको ये कहा
आप लिखते हैं तो बस बेकार हैं
सिया
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