Sunday 8 May 2011

सोलह सिंगार करू


तुझे निहारूं हर पल मैं बस एक तुझसे  ही प्यार करूं 
आजा तुझको ऐसे  मैं सवारूँ तेरा सोलह सिंगार करू 

बालो को गज़रे से  सजा दू, माथे पे चाँद का  टीका सजा दू
सूरज से दमके तेरी बिंदिया ,लब को लाल गुलाब करू 

कानो में झुमके भी डोलें , लब खुले पर कुछ ना बोलें
 मांग में तेरी सितारे भर दूँ,नयन  तेरे  कजरारे करू 

सुर्ख जोड़े में लिपटी ऐसे कमल खिला हो कोई जैसे     
नाक में झूले नथ ये बोले मैं ये दरिया पार करू 

हाथ हिना से लाल बताये की साजन की तू प्यारी  
छन छन कर कंगना कहता कब से तेरा इंतज़ार करू

बाजूबंद तेरी  बाहों का बोले मैं इकरार करू 
तेरी  बाहों को ही  मैं अपने  गले का हार करू 

नाजुक पाँव महावर सजता. यू ना ज़मीन पर पैर धरु 
बिछिये पाँव के  कहे आज  मैं सुहागन तुझको करू 

पायल की छम छम बोले ये..अब  साजन के  द्वार चलू
जीने के अब इस दुनिया में अपने मैं आसार करूँ 

लम्हा लम्हा  ना सरक जाये  तुझे ऐसे मैं गिरफ्तार करू 
सिया पा के तुझे चाहू मैं यहीं हर पल  मैं तेरा दीदार करू 


सिया


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