फिर भला क्या ज़िन्दगी में पायेगा
आदमी जब मुतमईन हो जायेगा
मय के पैमाने भला अब कब तलक
इस तरह क्या दिल को तू बहलायेगा
इस तरह भी ख़ूबसूरत हो बहोत
कौन उलझी ज़ुल्फ़ को सुलझाएगा
छाँव में आने लगेंगे लोग फिर
जब कोई पौधा शजर बन जायेगा
बोझ ही बस बोझ उस पर इस कदर
इस तरह तो शख्स वो मर जायेगा
उसके फ़न में इक अजब जादू सा है
नाम तो दुनिया में वो कर जायेगा
siya
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