लोग रहते हैं ज़िन्दगी वाले
घर में हर सिम्त रोशनी वाले
रंग अब तक हयात ही ना हुए
गीत लिक्खूं क्या अब ख़ुशी वाले
मैं समंदर हूँ ये तो मान लिया
लोग मिलते हैं क्यूं नदी वाले
आप उनको मज़ाक मत समझो
चंद जज़्बे हैं आखरी वाले
ख़त मेरे रूस्वा किस तरह करते
मैंने लिक्खे थे सादगी वाले
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