माना की ज़िन्दगी का हुनर जान गए हम
ऐ दोस्त आपको भी तो पहचान गए हम
तू ना मिला हमें कहीं ऐ दोस्त क्यूं बता
गलियों की तेरे ख़ाक बहुत छान गए हम
दुश्मन कहा था जिसने मुहब्बत का दोस्तों
घर उसके ही क्यूं बनके मेहमान गए हम
अब रास्ता न रोकना इतनी है इल्तेजा
करने की कुछ न कुछ तो सनम ठान गए हम
लौटे हैं खाली हाथ यही दुःख है बस "सिया"
दिल में हज़ार ले के तो अरमान गए हम
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