क्यों इतना बेखबर होकर मेरे बाजू से गुजरा है
तुम्हारी इक नज़र खातिर ये दिल बरसो से तरसा है
बरसता हैं जो कतरा नहीं पानी की हैं बूंदे हैं
ये आंसू हैं जो मेरी इन्ही आँखों से बरसा है
नब्ज़ जाती है अब छु टी तेरे दीदारे _ हसरत में
आखरी शब् है जुदाई का यहीं दिल में गम सा है
आ तुझको देख लू जी भर फिर मुझको करार आये
की तुझपे जान लुटा दे जो न कोई ऐसा हम सा है
आखरी दम ये मेरा पनाहों में तेरी निकले
सनम अब आ भी जाओ पास मेरे वक़्त कम सा है
siya...
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