Sunday 5 June 2011

चंद शेर आपकी खिदमत मे

नेक सोहबत मिले तो इंसान की सोच निखर जाती हैं
गुलो को छू के जो गुज़रे वो हवाये भी महक जाती हैं

सिया ....



किस तरह दर्द अपने दिल में छुपाया हमने
वो किसी और की चाहत ,ये बताया उसने
सिया...

तू मिलकर जब भी मुझसे जुदा हुआ
ये सांसे वही थम गयी ऐसा गुमान हुआ

सिया....


क्या मिला मुझको आज इश्क मे चाहत का सिला
टूट कर चाहने की पाई सजा अपना दिल टूटा मिला

सिया 


यूं तो बाते तुम कमाल किया करते हो
वफ़ा की बात पे क्यों टाल दिया करते हो

सिया..



ये तड़प ,आह ,दर्द,ग़म आँख से बहता पानी
आपकी दी हुई हैं सौगाते .आपकी ही हैं मेहरबानी


सिया...


मैं  हमेशा  ही  सबसे  हसके  मिला  करती  हूँ .
ना  जाने  लोग  क्यों  कहते  हैं कुछ तो ग़म हैं तुझे

सिया .....


जिन्हें हसरत हैं दौलत की वो दिल भी तोलते हैं
वो इंसान हैं कहाँ उनको तो पत्थर बोलते हैं

सिया ...


क्यों इतना बेखबर होकर मेरे बाजू से गुज़रा हैं
तेरी इक नज़र खातिर ये दिल बरसो से तरसा है

siya..


ज़मीन सूखी पड़ी है कब से अभी पानी ना बरसा हैं
तू किस बारिश में भीगा हैं ज़माने भर में चर्चा हैं

siya...



कभी तो मिल तू जिंदगी अकेले में मुझे
अपने सारे  हिसाब तुझसे हम चुकता करेगे
जिंदगी जो मिली तो हस के ये बोली मुझसे
जिसके जैसे करम वैसे ही वो भुगता करेगे

सिया...



आँखों में कुछ ख्वाब अधूरे कुछ देर मुझे तुम सोने दो
अभी दिल की ज़मीन नम हैं कुछ अरमानो को बोने दो
सिया ...

देख कर मुझको बेसहारा फलक ने कर दिया साया मुझपे

सिया ...


तू पत्थर के जिगर वाला मेरे दिल में मोहब्बत हैं

ये पत्थर भी पिघल जाये जो दिल में सच्ची शिद्दत हैं


सिया...



जिसको माना अपना हैं वो ही ज़ख़्म नया इक दे के गया

लब तो हसे पर ,दर्द छुपा ना आँखों से जो मुझे  तू दे के गया


सिया.. 



 ताज़ा है ज़ख्म कुरेदो ना कोई बात करो
पुराने ज़ख्मों को तो जरा भर जाने दो
अभी इन आँखों में चुभा करती हैं किरचे
ख्वाब टूटे हुए को फिर से ना सजाने दो

सिया.. 



कच्चे बखिये से उधड़ते जाते हैं झूठे रिश्ते 
दिल से फिर भी ना निकल पाए जो टूटे रिश्ते 
दर्द का इक खजाना मिला हैं क़र्ज़ मुझे 
जिंदगी भर है चुकानी मुझे उसकी किश्ते

सिया..



अभी  गुम है  परस्ती _ऐश में फिरे उड़ता हवाओ में
मिली जब ठोकरे पछताए,  मिला क्या इन गुनाहों में
सिया.. 




वो मुझसे देर तक खफा ना रह सकता
मैं जानती हूँ वो मुझ से जुदा ना रह सकता
सिया


ये मुफलिसी भी क्या रंग दिखा जाती है
खून के रिश्तो को भी ये मिटा जाती है
सिया..




इतना बच कर भी ना गुजरो हमसे
की हम भी आंख चुराए तुमसे
सिया ..


हैं चार दिन का जीना क्यों जल रहा नफरत में
क्यों ना जलाये दिल में चिंगारी मोहब्बत की
सिया ...

हैं चार दिन का जीना क्यों जल रहा नफरत में
क्यों ना जलाये दिल में चिंगारी मोहब्बत की
सिया ...


कभी कामयाबी की तलाश में भटकती है जिंदगी
और कभी कामयाबी के नशे में बहकती है जिंदगी

सिया


गुनाहों से करो तौबा की खुदा की  बंदगी कर लो
उसीके  के नूर से पुरनूर अपनी जिंदगी कर लो

सिया

अब ना शिकवा .ना गिला .ना कोई अब  मलाल रहा
सितम तेरे भी बेहिसाब रहे ,सब्र मेरा भी कुछ कमाल रहा 



सिया





 कब से यूं दरबदर भटका किया पाया
क्या दीवाने ने
राह_ऐ -फना  में   साथ दिया है कभी ज़माने ने

सिया 






कुछ ऐसा काम कर जा की ख़ुशी से मर सके 
जिंदगी के  सफ़र को बेह्तर मुकम्मल कर सके
फ़ना हो जायेगा इक दिन किसी के काम तो आजा
गैर का दर्द भी महसूस हो कोई बन्दा गुनाह ना कर सके
सिया

मैं उम्र भर यूं ही उडती रही खयालो में, आसमानों में
होश आया जब पाव के नीचे से ज़मीन खिसक गयी

सिया

उसके लफ्जों से बरसते थे फूल ,ये ना जाना दिल में इतना ज़हर इतना रखते है

चलो कुछ जिंदगी का ये तजुर्बा तो मिला, जाना की लोग बनावट का हुनर रखते है

सिया


गमो के बदली छटी और ख़ुशी की छायी घटा
हसी जो आई लबो पे तो भीगा संग काजल

सिया


चल तो दिए निकल के बस दो कदम चले
फिर याद आया ये रास्ता मंजिल नहीं मेरी

सिया


अब तो मिलते हुए लोगो से घबराते हैं हम

फिर से पूछेगे खोद खोद के दिल में क्या है

सिया



कुछ ऐसे नकली चेहरे ,रहे हरदम चेहरे पे नकाब
हर बात फरेब हो उनकी हर सवाल पे झूठा जवाब


सिया



हौसले बनाये रख  हिम्मत रहे जवान
हालात से डरे ना जो वो ही सही  इंसान 


सिया 


रख खुद पे यकीन और मंजिल पर नज़र रख
कामयाबी के यहीं मरहले रख आगे कदम रख
 सिया



दर्द होता रहा छटपटाते रहे अपनों से हम सदा चोट खाते रहे
दीदा _ए _नम छुपाकर ज़माने से, सामने सबके मुस्कराते रहे

सिया


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