बेचैनियाँ ये दिल की कैसे तुम्हे बताएं
लफ्जों में दर्द अपना हम कर बयां न पाए
हालत हैं दीवानों सी हैरान हूँ मैं खुद पे
किस कशमकश से गुज़री कैसे ये हम बताये
लाये कहाँ से इतना अंदाज़ -ए -हिम्मते हम
चेहरा बता रहा हैं कुछ तो गवां के आये
होकर के बेखबर हम हँसते तो कभी रोते
रहते हैं खुद में खोये ,खुद को समझ ना पाए
ये किस अधूरेपन की तकलीफ हो रही है
जो भीड़ में भी रहते तन्हाईयो के साये
"
ReplyDeleteलाये कहाँ से इतना अंदाज़ -ए -हिम्मते हम
चेहरा बता रहा हैं कुछ तो गवां के आये"
बहुत बढ़िया...
khoobsoorat ahsaas hain. tarashte rahiye.
ReplyDelete