दर्द होता रहा छटपटाते रहे
चोट अपनों से अक्सर ही खाते रहे
दीदा-ए-नम छुपाकर ज़माने से हम
सामने सबके हम मुस्कराते रहे
दिल में आहे लिए,लब पे झूठी हसी
गीत खुशियों के हम गुनगुनाते रहे
भरने को ज़ख्म तो सारे भर जायेगे
टीस जब भी उठे , हम कराहते रहे
बुत ये बेजान लेकर जमाने में हम
खुद को ज़िंदा है हरदम बताते रहे
रस्मे _दुनिया का खुद हवाला दिया
खुद से नज़रे हम अपनी चुराते रहे
दागे _ए _सीन _ए _दर्दे ना पूछे कोई
जो जमाने से हरदम छुपाते रहे
बोझ दिल में छुपाये हुए हम सिया
उम्र भर दर्द-ओ-गम को उठाते रहे
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