क्या करे ऐसे आशियाने का, क्यों यहाँ कोई बसर करे
जहाँ साँस ले सके न हम , जहाँ प्यार भी ना असर करे
यहां नश्तरों का ये हुजूम है, जो सीने के पार हो गया
अब सहा जाता नहीं ग़म वो कहां पे जाये, क्या घर करे
रिश्ते यहाँ पे कुछ भी नहीं, तन्हाइयों का है इक सफ़र
कौन तन्हा तवील सा ये ज़िन्दगी का सफ़र करे
उफ़ कौन समझा है अब यहां जज़बात मेरे प्यार के
ऐ सिया शाम खतम हो ,यहां रह के कौन सहर करे
siya..
जहाँ साँस ले सके न हम , जहाँ प्यार भी ना असर करे
यहां नश्तरों का ये हुजूम है, जो सीने के पार हो गया
अब सहा जाता नहीं ग़म वो कहां पे जाये, क्या घर करे
रिश्ते यहाँ पे कुछ भी नहीं, तन्हाइयों का है इक सफ़र
कौन तन्हा तवील सा ये ज़िन्दगी का सफ़र करे
उफ़ कौन समझा है अब यहां जज़बात मेरे प्यार के
ऐ सिया शाम खतम हो ,यहां रह के कौन सहर करे
siya..
"क्या करे ऐसे आशियाने का, क्यों यहाँ कोई बसर करे
ReplyDeleteजहाँ साँस ले सके न हम , जहाँ प्यार भी ना असर करे"...
सुन्दर पंक्तियाँ