लोग पल भर में बदल जाते है
जैसे मौसम हो आते जाते है
फूल लहजे से जिनके झरते है
उनके तेवर भी बदल जाते है
वादे करते है कसमे खाते है
फिर वो मजबूरियां जताते है
काश हम भी उन्हें समझ पाते
वो जो चेहरे कई लगाते है
कभी मिलते हैं गरम जोशी से
और कभी आंख यूं चुराते है
हमसफ़र बन के साथ चलते है
फिर वो राहो में छोड जाते है
जब चला जिक्र बेवफाई का
आप क्यों अपना मुहं छुपाते है
सिया
जैसे मौसम हो आते जाते है
फूल लहजे से जिनके झरते है
उनके तेवर भी बदल जाते है
वादे करते है कसमे खाते है
फिर वो मजबूरियां जताते है
काश हम भी उन्हें समझ पाते
वो जो चेहरे कई लगाते है
कभी मिलते हैं गरम जोशी से
और कभी आंख यूं चुराते है
हमसफ़र बन के साथ चलते है
फिर वो राहो में छोड जाते है
जब चला जिक्र बेवफाई का
आप क्यों अपना मुहं छुपाते है
सिया
सुन्दर...सार्थक एवं सटीक रचना
ReplyDeletetoo gud .. :)
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