तुम मुझे जितना आजमाते हो
दिल से उतने ही दूर जाते हो
यूँ न देखो नज़र से दुश्मन की
शक की आदत में क्यूं जलाते हो
इम्तेहां मेरा ले रहे हो मगर
मुझमे आके ही डूब जाते हो
कितने नाकाम से मरासिम हैं
क्यूं तमाशा उन्हें बनाते हो
सांस दर सांस मौत का आलम
तुम तो बस यूं ही मुस्कुराते हो
"सिया सब जीत जाएँ नामुमकिन"
हार से फिर क्यूं खौफ़ खाते हो
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