सितम इतने किए तूने कि मेरा दम निकल जाये
ये कैसा प्यार है तेरा समझ में कुछ नहीं आये
ज़ुबान पर आपने ताले लगाये इसक़दर मेरी
जरा से गुफ्तगू को भी हमारा दिल तरस जाये
सनम तुझको मेरी परवाह आख़िर क्यूं नहीं होती
तुम्हारे हर कदम पर हैं मेरी चाहत के जब साये
बस एक चेहरा तुम्हारा बसा है मेरी आँखों में
बिछड़ के आपसे हमको नज़र कुछ भी नहीं आए
वो जब भी याद आये, सिया का दिल धड़क जाये
तुम्हारे साथ ये लम्हे बता दे क्यों नहीं पाए
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