Thursday 22 September 2011

तनहा ही भटक जाएंगे


अब जो बिखरे तो फिजाओं में सिमट जाएंगे 
ओर ज़मीं वालों के एहसास से कट जाएंगे 

मुझसे आँखें न चुरा, शर्म न कर, खौफ न खा 
हम तेरे वास्ते हर राह से हट जाएंगे 

आईने जैसी नजाकत है हमारी भी सनम 
ठेस हलकी सी लगेगी तो चटक जाएंगे 

हम-सफ़र तू है मेरा, मुझको गुमाँ था कैसा 
ये न सोचा था कि तनहा ही भटक जाएंगे 

प्यार का  वास्ता दे कर  मनाएगी 'सिया' 
मेरे  जज़्बात से कैसे वो पलट जाएंगे

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