Sunday 2 October 2011

फख्र से इस जुर्म का इकरार होना चाहिए


फख्र से इस जुर्म का इकरार होना चाहिए 
इश्क है तो इश्क का इजहार होना चाहिए 

इस जहाँ में कोई ग़म ख्वार होना चाहिए 
सबके दिल में प्यार ही बस प्यार होना चाहिए 

तेज़ चलने के लिए मुझसे ही क्यूं कहते है आप
आप को भी कुछ तो कम रफ़्तार होना चाहिए

ग़मज़दा देखे मुझे और हंस पड़े बेसाख्ता
क्या भला ऐसा किसी का यार होना चाहिए

उफ़ तेरा तिरछी नज़र से मुस्कुरा कर देखना 
तीर नज़रों का जिगर के पार होना चाहिए 

खुद परस्ती हर तरफ फैली है इतनी क्यों 'सिया
' न किसी की राह में दीवार होना चाहिए

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