Sunday 16 October 2011

मेरा केडा घर वे रब्बा .....



इक ही गल बस सुनदी आई धीए तू ते हैं परायी
अपने ही जद कहन पराया दुखदा है दिल अख भर आई

धी दा वी ते भैन दा वी मैं सारे फ़र्ज़ निभादी आई
क्यों अपनी होंदे होए, कुडिया नु सब कहन परायी

व्या के जद दूजे घर आई ओथे वि मैं रही परायी
सबनू खुश करने दी खातिर मैं ता अपनी उम्र गवाई

मैं ता सारे फ़र्ज़ निभाए,पर किसी ने मेरी कदर ना पाई
धीया पुत्तर व्या दित्ते ने, घर विच हुन हैं नू मेरी आयी

माँ लगदी हुन बोझ जिन्ना नु ओना दे वी नाल निभाई
इक औरत दा घर हैं केडा आज तक मैंनु समझ ना आयी

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