तुम ने मुझे लिखा था जो ख़त के जवाब में
महफूज़ कर लिया है वह दिल की किताब में
दुख दर्द में हमेशा जो आता है सब के काम
दे दीजे उस को लफ्ज़ फ़रिश्ता ख़िताब में
दिल को किसी के मुझ से न तकलीफ़ हो कभी
या रब बुरा किसी का न सोचूँ मैं ख्वाब में
तेरी नज़र ने कर दिया मदहोश दिल मेरा
ऐसा नशा कहाँ है किसी भी शराब में
मिलके भी उस से हम रहे मेहरुमे दीद_ए_यार
उस ने छुपा के रक्खा था चेहरा नकाब में
दिन में भी मेरे घर में अँधेरा रहा :सिया:
वैसे तो रौशनी थी बहुत आफ़ताब में
बहुत खूब सिया जी....दाद कबूल कीजिये.
ReplyDeleteVIDYA JI aapne Ghazal pasand kiya meri mehnat safal hui bohot bohot shukriya ...salamat rahe
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