रोज़ शब् होते ही उसके घर को महकाती हूँ मैं
बन के खुशबू उसके आँगन में बिखर जाती हूँ मैं
लोग कहते हैं भुलाना चाहता है वोह मुझे
इसका मतलब है के उसको अब भी याद आती हूँ मैं
ए मेरे महबूब आता है तो फिर जाया ना कर
बन के खुशबू उसके आँगन में बिखर जाती हूँ मैं
लोग कहते हैं भुलाना चाहता है वोह मुझे
इसका मतलब है के उसको अब भी याद आती हूँ मैं
ए मेरे महबूब आता है तो फिर जाया ना कर
तुझ से इक पल भी बिछड़ जाऊ तो घबराती हूँ मैं
मेरी आँखें बोलती रहती हैं सच मैं क्या करू
उस से जो कहनी ना हो वोह बात कह जाती हूँ मैं
क्या बताऊँ ज़िन्दगी ने क्या दिया मुझको सिया
रोज़ औरों के गुनाहों की सजा पाती हूँ मैं
मेरी आँखें बोलती रहती हैं सच मैं क्या करू
उस से जो कहनी ना हो वोह बात कह जाती हूँ मैं
क्या बताऊँ ज़िन्दगी ने क्या दिया मुझको सिया
रोज़ औरों के गुनाहों की सजा पाती हूँ मैं
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