Wednesday 18 January 2012

फूल ये कैसे कहे खार से डर लगता है .


प्यार में पहले तो इनकार से डर लगता है 
और फिर वादा - शिकन यार से डर लगता है .

साथ तो हैं मेरे लिपटा रहे हैं दामन से 
फूल ये कैसे कहे खार से डर लगता है .

तुम में और हम  में हमेशा से ये ही फर्क  रहा 
जीत से  हम को तुम्हें हार  से  डर लगता है 

हर तरफ बिखरी हुई  खून से लथपथ खबरें  
अब हमें सुब्ह के अखबार से डर लगता है.

नाखुदा से कोई उम्मीद नहीं है बाक़ी 
अब हमें वाकई मंझधार से डर लगता है.

जीत के ख्वाब से बहलाते रहे हैं दिल को 
हाँ हकीकत में हमें हार से डर लगता है .

 ९..हाय  महंगाई बता  कैसे चलाये घर को 
अब ग्राहक को ही बाज़ार से  डर लगता  हैं  

वोह ज़माने  को  बता दे  ना  कहीं सच  मेरा  
 ए  कहानी तेरे  किरदार  से  डर लगता है 

इस ज़माने में भला किसपे भरोसा कर लें 
अब  तो अपनों के भी व्यहार से डर लगता है 

आईने तेरी नज़र  में  वो  मुहब्बत  ना  रही 
ए  सिया अब  हमें  सिंगार  से  डर  लगता  हैं  
 

Tuesday 17 January 2012

छुपाए हैं हज़ारों दर्द ये बेहद करीने से।


धुंआ बन बन के उठते हैं हमारे ख्वाब सीने से
परेशान हो गए ऐ ज़िन्दगी घुट घुट के जीने स


 हमें  तूफ़ान से  टकरा  के  दो  दो  हाथ  करने  हैं
"जिसे साहिल की हसरत हो उतर जाए सफ़ीने से"


चले तो थे निकलने को, पलक पर थम गये ऑंसू
छुपाए हैं हज़ारों दर्द ये बेहद करीने से।


 दुआ  से  आपको  अपनी  वो मालामाल  कर देगा 
 लगाकर देखिए तो आप भी मुफलिस को सीने  से 


 मुझे रोते हुए देखा, दिलासा यूँ दिया मॉं ने 
उतर  आएगी ऑंगन में परी चुपचाप जीने  से


अगर होता  यही  सच  तो  समंदर  हम बहा  देते
'सिया' होगा न कुछ हासिल कभी ये अश्क पीने से।

ग़र बदलते न ये हालात बहुत अच्छा था|


तुमसे कह देते हर इक बात बहुत अच्छा था 
ग़र बदलते न ये हालात बहुत अच्छा था|

काश अश्को को न आँखों में छुपाया होता 
चीख उठते जो ये जज़बात बहुत अच्छा था 

ये भी अच्छा हैं अकेले ही रही सारी उम्र
आप देते जो मेरा साथ बहुत अच्छा था

कम से कम खुद से बिछड़ने का गिला न रहता 
सह जो लेते हम ये सदमात बहुत अच्छा था 

ठहरे पानी सी वो खामोश मोहब्बत उसकी . ....
होती चाहत की जो बरसात बहुत अच्छा था 

रूह आजाद हुई जिस्म से एक रोज़ सिया 
उसने जितना भी दिया साथ बहुत अच्छा था

Friday 13 January 2012

बेक़रारी (नज़्म)


नींद आँखों से छिन गयी मेरी
पलकें बोझल अजब सी बेचैनी
कौन है, किसका इंतजार मुझे
रात दिन बेक़रार करता है
मेरी आँखों से आज रह रहके
बनके आंसू जो बरसता है

राह जिसकी निगाह तकती है
एक झलक काश वो दिखा जाये
जाने वो रूठकर कहा है छिपा
चाँद जैसे छिपा हो बादल में
फिर भी महसूस यही होता है
हो मेरे आसपास वो जैसे

कुछ तो ऐसा था उसकी निस्बत में
जो मुझे बेकरार करता है
वर्ना होकर किसी से दूर कोई
न किसी की यूँ राह तकता है

जाने वो कौन सी कशिश है जो
मुझको हर वक़्त याद आती है
उसके क़दमो की हरेक आहट से
रूह रह रह के चौंक जाती है

कोई तो आरजू थी सीने में
जो दबे पाँव चली आई है
कोई दस्तक न कोई आहट है
बनके एक याद दिल पे छाई है

एक अनदेखा एक अंजाना
जाने किसका ख्याल आया है
एक अधूरा सा ख्वाब जो जैसे
मैंने आँखों में जो सजाया है
मन को है किसकी आरजू-ए-तलाश
ख्वाब को कब मेरे परवाज़ मिले
है मेरी सिर्फ दुआ इतनी 'सिया'
काश उसको मेरी आवाज़ मिले

-सिया

Friday 6 January 2012

प्यार से तुमने जो इक बार पुकारा होता

ज़िन्दगानी को कभी मेरी संवारा होता
एक लम्हा ही मेरे साथ गुज़ारा होता ।

उम्र भर जिस की मोहब्बत में तड़पती मैं रही
काश उसको भी मेरा प्यार गवारा होता ।

किसी दीवार के रोके से न रुक पाते हम
प्यार से तुमने जो इक बार पुकारा होता ।

दिल तो क्या चीज़ है हम जाँ भी निछावर करते
आप की आँख का गर एक इशारा होता ।

चारागर कर नहीं सकता मिरे ज़ख्मों का इलाज
आप आते तो मेरे दर्द का चारा होता ।

ऐ "सिया" डूब न जाते हम इस आसानी से
गर हमें भी किसी तिनके का सहारा होता 

Thursday 5 January 2012




उनका शेवा है सदा सब से गुरेज़ाँ होना
बेवफ़ाई पे कभी उनकी न हैरां होना 

तेरी यादो को मेरे दिल में हैं मेहमान होना 
काम मुश्किल हैं मगर इसको हैं आसां होना 

मुझपे इलज़ाम _तराशी में लगे हैं वो लोग 
जिनपे वाजिब था मेरे दर्द का दरमाँ होना 

मैंने इस दिल को जलाया हैं तेरी चाहत में 
अब तो तै हैं तेरी महफ़िल में चरागाँ होना 

ऐसा लगता है उन्हें ख़ूब मज़ा आता है
देख कर एक परेशां का परेशां होना

काम ऐसा न करो उँगलियाँ उठ्ठें तुम पर
और लाजिम हो कभी तुम को पशेमां होना

है कड़ी धूप में बच्चों पे वो साये की तरह
इतना आसां नहीं औरत के लिए माँ होना

तितलिया कैसे पकड़ लू मैं तेरी चाहत की 
तुमको आता ही नहीं मुझपे मेहरबाँ होना

तेरी यादो को मेरे दिल में हैं मेहमान होना 
काम मुश्किल हैं मगर इसको हैं आसां होना 

देख लो उनकी अना का वहीं अंदाज़ है आज
वहीं बेज़ारी वहीं सब से गुरेज़ाँ होना

धूप ये ग़म की जला भी दे मगर हैं मुझको 
अश्क बन कर तेरी आँखों से नुमायाँ होना 

ऐ सिया मेरा उसूलों के डगर पर है सफ़र 
इस सफ़र का कभी मुमकिन नहीं आसां होना



Wednesday 4 January 2012

नफरतों की आतिश को प्रेम से बुझाते हैं

ज़िन्दगी के खतरों से जो नज़र चुराते हैं 
रास्तों में उनके ही पैर डगमगाते हैं .

सारे रह नवर्दों की मंज़िलों पे नज़रें हैं 
अज्म के मुसाफिर को रास्ते बुलाते हैं . 

एक बाहमी रिश्ता इसलिए ही कायम है
वो भी मान जाते हैं हम भी मान जाते हैं

अम्न के उसूलों पर हम यक़ीन रखते हैं
नफरतों की आतिश को प्रेम से बुझाते हैं

हम तो ऐसे जीने को जिंदगी नहीं कहते
सिया बस ज़माने में रात दिन बिताते हैं


हम तो ऐसे जीने को जिंदगी नहीं कहते
सिया बस ज़माने में रात दिन बिताते हैं

मेरे सीने में ग़मे दिल का धुवां रहने दो।

दर्द जो दिल में निहाँ है सो निहाँ रहने दो
मेरे सीने में ग़मे दिल का धुवां रहने दो।

बड़ी मुश्किल से जगह पाई तुम्हारे दिल में
कम से कम अब मुझे दो पल तो यहाँ रहने दो।

मेरे एहसास से अफ़कार जनम लेते हैं
मेरे एहसास जवां है तो जवां रहने दो।

तुम्हें शोहरत की तमन्ना मुझे गुमनामी का शौक़
मेरे यारो मुझे बे नामो निशां रहने दो।

मुझे मालूम है क्या क्या है तुम्हारे दिल में
प्यार का लहजा मोहब्बत की ज़बां रहने दो।

अब वह आये हैं तो उनसे कोई शिकवा न करो
आज के दिन तो "सिया" तल्ख़ बयां रहने दो।