मुसीबतों की मेरे घर हवा जो चलने लगी
तो मेरे अपनों की पहले नज़र बदलने लगी।
खुदा बचाए मेरे मुल्क को तिजारत से
हवा कुछ ऐसी सियासत की आज चलने लगी
भरोसा खुद पे बहुत था की तनहा जी लेगे
कमी किसी की मगर आज बहुत खलने लगी।
इसी की देर थी बस मां दुआएं दे मुझ को
फिर उसके बाद बला मेरे सर से टलने लगी।
ज़माना उसको समझने लगा है अब शायद
वह एक बात जो मेरी ग़ज़ल में ढलने लगी।
ग़रीब बाप पे पैसे न थे वह क्या करता
जो देखी गुडिया तो बच्ची वहीं मचलने लगी।
"सिया" ज़माने के रुख़ को कभी समझ न सकी
लगी जो वक़्त की ठोकर तो वह संभलने लगी।
तो मेरे अपनों की पहले नज़र बदलने लगी।
खुदा बचाए मेरे मुल्क को तिजारत से
हवा कुछ ऐसी सियासत की आज चलने लगी
भरोसा खुद पे बहुत था की तनहा जी लेगे
कमी किसी की मगर आज बहुत खलने लगी।
इसी की देर थी बस मां दुआएं दे मुझ को
फिर उसके बाद बला मेरे सर से टलने लगी।
ज़माना उसको समझने लगा है अब शायद
वह एक बात जो मेरी ग़ज़ल में ढलने लगी।
ग़रीब बाप पे पैसे न थे वह क्या करता
जो देखी गुडिया तो बच्ची वहीं मचलने लगी।
"सिया" ज़माने के रुख़ को कभी समझ न सकी
लगी जो वक़्त की ठोकर तो वह संभलने लगी।
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