ग़ज़ल
क्यूं तुझको लग रहा है कि तुझसे जुदा हूँ मैं
मुझमें तू खुद को देख तेरा आईना हूँ मैं
ऐ दिल ! सभी ने तोड़ दिया है यकीन तेरा
दुनिया की बात क्या करूँ ख़ुद से ख़फ़ा हूँ मैं
बस तेरा आसरा है मुझे ऐ मेरे खुदा
सजदे में तेरे हर घडी महवे-दुआ हूँ मैं
अल्लाह रे ज़माना-ए-हाज़िर का क्या करें
हर शख्स कह रहा है यहाँ पर खुदा हूँ मैं
कितना ज़माना हो गया भूली हूँ मैं हँसी
लगता हैं जैसे दर्द का इक सिलसिला हूँ मैं
तेरे बगैर मैं तो अधूरी थी शायरी
पहचान हुई खुद से ये जाना 'सिया' हूँ मैं
-सिया सचदेव
क्यूं तुझको लग रहा है कि तुझसे जुदा हूँ मैं
मुझमें तू खुद को देख तेरा आईना हूँ मैं
ऐ दिल ! सभी ने तोड़ दिया है यकीन तेरा
दुनिया की बात क्या करूँ ख़ुद से ख़फ़ा हूँ मैं
बस तेरा आसरा है मुझे ऐ मेरे खुदा
सजदे में तेरे हर घडी महवे-दुआ हूँ मैं
अल्लाह रे ज़माना-ए-हाज़िर का क्या करें
हर शख्स कह रहा है यहाँ पर खुदा हूँ मैं
कितना ज़माना हो गया भूली हूँ मैं हँसी
लगता हैं जैसे दर्द का इक सिलसिला हूँ मैं
तेरे बगैर मैं तो अधूरी थी शायरी
पहचान हुई खुद से ये जाना 'सिया' हूँ मैं
-सिया सचदेव
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