अधूरा हैं सफ़र इस ज़िन्दगी का
कोई अवसर नहीं है वापसी का
मेरी आँखों से हो बरसात इतनी
समन्दर सूख जाये तश्नगी का
इसी इक आरज़ू में उम्र गुज़री
कोई तो पल मयस्सर हो ख़ुशी का
मुसीबत का सबब ईमानदारी
तमाशा बन गया है ज़िन्दगी का
तेरी यादों के जंगल में खड़ी हूँ
कोई धब्बा नहीं है तीरगी का
रफू करती हूँ इतने चाक दिल के
हुनर ख़ुद आ गया बखियागरी का
चराग़े दिल जलती हूँ वहां मैं
जहां दम टूटता हैं रौशनी का
सिया से कोई क्यूं नाराज़ होगा
कभी भी दिल दुखाया हैं किसी का ?
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सिया से कोई क्यूं नाराज़ होगा
कभी भी दिल दुखाया हैं किसी का ?
आहाऽऽहाऽऽऽ…
क्या अंदाज़ है ! बहुत प्यारा मक़्ता है …
आदरणीया सिया सचदेव जी
सस्नेहाभिवादन !
सादर नमन !
आदाब !
आपके ब्लॉग की बहुत सारी ग़ज़लें और गीत पढ़ने के बाद ख़ुद को फ़िलहाल किसी और ही जहां में महसूस कर रहा हूं …
:)
इस ग़ज़ल के ये शे'र बहुत बहुत अच्छे लगे …
अधूरा हैं सफ़र इस ज़िंदगी का
कोई अवसर नहीं है वापसी का
मेरी आंखों से हो बरसात इतनी
समंदर सूख जाये तश्नगी का
मुसीबत का सबब ईमानदारी
तमाशा बन गया है ज़िंदगी का
तेरी यादों के जंगल में खड़ी हूं ★
कोई धब्बा नहीं है तीरगी का
रफू करती हूं इतने चाक दिल के ★
हुनर ख़ुद आ गया बखियागरी का
चराग़े दिल जलाती हूं वहां मैं
जहां दम टूटता हैं रौशनी का
वाह वाह वाह कहता ही जा रहा हूं …
*महावीर जयंती* और *हनुमान जयंती*
की शुभकामनाओं-मंगलकामनाओं सहित…
- राजेन्द्र स्वर्णकार