Monday 30 April 2012

आवाज़ के पत्थर से नया ज़ख्म लगा दे

ये धूप न धरती के बदन को ही जला दे 
साये के लिए भागते बादल को सदा दे 

सहरा को ज़रा देर में गुलज़ार बना दे
वो एक तब्बसुम से कई फूल खिला दे

नफ़रत की ज़मीं में भी मोहब्बत के लगा पेड़
आँगन में जो दीवार उठी है वो गिरा दे

ज़ख्म -ए -दिल- ए -उम्मीद तो भर जायेगा पल में
देना हैं अगर तुझको तो दामन की हवा दे

मंज़िल के तमन्नाई क़दम ठीक से रखना
ठोकर न कहीं पावं की,दूरी को बढ़ा दे

तन्हाई की चीखों से न मर जाऊ कहीं मैं
आवाज़ के पत्थर से नया ज़ख्म लगा दे

दुनिया के परिंदों का नशेमन है ये दुनिया
जो आग लगाते है उन्हें जाके बता दे

आसान किया उसने तेरा काम सिया ख़ुद
तू जाके किसी रोज तो कातिल को दुआ दे

ye dhoop n dharti ke badan ko hi jala de
saye ke liye bhagte badal ko sada de

sahra kojara der mein gulzaar bana de
wo ek tabbsum se kayi fool khila de

nafrat ki zameen mein bhi mohbbat ke laga ped
aangan mein jo deewar uthi hain wo gira de

zakhm e dil e umeed to bhar jayege pal mein
dena hai agar tujhko to damaan ki hava de

manzil ke tamnanayi kadam theek se rakhna
thokar na kaheen pavn ki,duri ko badha de

tanhaayi ki cheekho se na mar jau kaheen main
aawaz ke patthar se naya zakhm laga de

duniya ke parindo ka nasheman hain ye duniya
jo aag lagate hain uneh ja ke bata de

aasan kiya usne tera kaam siya khud
tu jake kisi roj to qatil ko dua de .....

....

रहबरी के लिए वो नूरे ख़ुदा है मुझ में


इस तरह ज़ज्ब हुआ है मेरा साया मुझ में 
ऐसा लगता है की कुछ ढूढ़ रहा है मुझ में 

मैंने हर हाल में जीने का हुनर सीखा है 
रहबरी के लिए वो नूरे ख़ुदा है मुझ में 

वक़्त की धूप ने मुरझा के रख दिया हैं उसे 
फूल उम्मीद का जिस वक़्त खिला है मुझ में

शोर  इतना है की सुन पाई ही नहीं अब तक 
एक  मुद्दत से कोई नग्मासरा है मुझ में 

राह की धूप भी लगने लगी ठंडी ठंडी 
छावं बन के वो कहीं आन बसा है मुझ में 

मेरे अशआर मेरा राज़ अयाँ कर देगे 
कब से इक प्यार का तूफ़ान छुपा है मुझ में 

मेरा बस चलता है ख्वाबों पे न यादों पे सिया 
इक मज़बूर सा इन्सां छुपा है मुझ में 

मगर ये राज़ न पूछो बहार है की नहीं


मेरी तरह ही तेरा हाल ए ज़ार है की नहीं 
के तेरे दिल में भी तस्वीर ए यार है के नहीं 

किसी को देखा था मुद्दत हुई नज़र भर के 
ये क्या बताऊ अभी तक ख़ुमार है के नहीं 

बहुत अजीब सा मौसम है दिल के गुलशन में 
मगर ये राज़ न पूछो बहार है की नहीं 

वो एक  पल भी गुज़रता नहीं था जिसके बगैर 
वो पूछता है मुझे उस से प्यार है की नहीं

 न सोच कितना गुलिस्तां पे है हमारा हक़ 
ये  सोच हम पे चमन का उधार है की नहीं 

वो एक बार ही ए काश देखता मुड़ के 
बगैर उसके सिया बेक़रार है की नहीं 

Meri tarah hi tera haal e zaar hai ke nahin
Ke tere dil men bhi tasveer e yaar hai ke nahin

Kisee ko dekha tha muddat huwee nazar bhar ke
ye kya batoon abhi tak khumar hai ke nahin

bahut ajeeb sa mausam hai dil ke gulshan meN..
.magar yeh raz na poocho bahar hai ke nahin

woh ek pal bhi guzarta nahin hai jis ke baghair
Woh poochta hai mujeh us se pyaar hai ke nahin

N soch kitna gulsitaan per hai hamara haq..
...yeh socho hum pe chaman ka udhar hai ke bahin

Woh ek baar hi ai kaash dekhta mud kar
..baghair uske SIYA beqaraar hai 

कुछ न कुछ है जो कहीं टूट गया है मुझ में


उसका ग़म भी जरा पहले से सिवा है मुझ में
दिल के ज़ख्मों का लहू आज रिसा है मुझ में

अब ख़ुशी हो के कोई ग़म हो भले है दोनों
ज़िन्दगी तेरा हर इक रंग जुदा है मुझ में

पहले हर बात पे हँसती थी मैं खुश होती थी
अब ये एहसास कहीं खो सा गया है मुझ में

 वो तमन्ना के खिलौने थे की उम्मीद की डोर
कुछ न कुछ है जो कहीं टूट गया है मुझ में


ढूंढती फिरती थी मैं सारे ज़माने में जिसे
आंख मूंदी तो वहीं आज मिला है मुझ में

मैं तो जब चाहे बना लूँगा निशाना तुझको
इक अनजान शिकारी की सदा है मुझ में

दश्त लगती है मुझे शहर की सारी रौनक़
ये अनासिर भी तरद्दुद में है क्या है मुझ में

जुल्म का क़द न घटा है न घटेगा ए सिया
हाँ मगर हौसला लड़ने का बढ़ा है मुझ में ..

uska gham bhi jara pahle se siva hai mujh mein
dil ka zakhmon ka lahu aaj risa hai mujh mein

ab khushi ho ki koyi gham ho bhale hai dono
zindgi tera har ek rang juda hain mujh mein

pahle har baat pe hasti thi main khush hoti thi
ab ye ehsas kaheen kho sa gaya hain mujh mein

wo tamnna ke khilone the ki umeed ki dor
kuch n kuch hai jo kaheen tut gaya hain mujh mein


dhudhti firti thi main sare zamane mein jise
aankh mondi to waheen aaj mila hai mujh mein

main to jab chahe bana lunga nishana tujhko
ek anzaan shikari ki sada hain mujh mein

dasht lagti hain mujhe shahar ki sari raunaq
ye anasir bhi tarddud mein hai kya hai mujh mein ..{anasir...panchtatv}

zulm ka qad n ghata hai n ghtega aye siya
haan magar housla ladne ka badha hai mujh mein

Sunday 8 April 2012

chand sher aapki khidmat mein

मेरी फ़ितरत भी जुदा , तेरा भी अंदाज़ जुदा 
खुद से शिकवा है मुझे, तुझको ज़माने से गिला

meri fitrat bhi juda,tera bhi andaz juda 
khud se shiqva hai mujhe,tujhko zamanae se gila 

siya 



कभी सहरा में कोई गुल खिला है 
यहाँ हर शख्स अपने से जुदा है 
दिया है दिल को अपने यूं दिलासा 
बिछड़ना ही मुकद्दर में लिखा है 

kabhi sahra mein koyi gul khila hai 
yahan har shakhs apne se juda hai 
diya hai dil ko apne yoon dilaasa 
"Bichhadna hi muqaddar me likhaa hai"
siya



Is zamaane mein nahi ab to mohabbat ka chalan,
Nafraten aag lagaate hain, sulagtee hai jalan.

इस ज़माने में नहीं अब तो मोहब्बत का चलन 
नफरतें आग लगाती हैं,सुलगती है जलन 

siya 



न पूछ मुझ से मेरी हसरतों के बारे में 

मैं चाहे जितना समेटूं , बिखर ही जाती हैं

na puch mujhse meri hasrato'n ke bare mein 
main chahe jitna sametu ,bikhar hi jaati hain 

siya


"haqeeqat khud jaga deti he aksar sone waloN ko
sunhehre khwab ki khatir' Siya ' kuchh der sone do

हकीक़त ख़ुद जगा देती है अक्सर सोने वालों को 
सुनहरे ख्वाब की ख़ातिर सिया कुछ देर सोने दो 
siya
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becheharagi ne shahar pe qabza jama liya
 hum dhudhte hai koy to chehra dikhayi de 

बेचेहरगी ने शहर पे क़ब्ज़ा जमा लिया
 हम ढूढ़ते है कोई तो चेहरा दिखाई दे 
siya
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मुझको दुनिया की कड़ी धूप न छू पाएगी
 माँ मेरे सर पे दुआओं भरा आँचल कर दे 

mujhko duniya ki kadi dhoop n chu payegi
 maa mere sar pe duaon bhara aanchal kar de 
siya 
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थके हुए है परिंदे अगर इजाज़त हो
ज़रा सी देर तिरे शहर में क़याम करे

thake hue hai parinde agar ijazat ho
 jara si der tire shahar mein qayaam kare'n

siya
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छोड़ कर चल तो दिए दश्त ए जुनू में तन्हा
अब ज़माने में कहीं दिल नहीं लगता मेरा
chodh kar chal to diye dasht e junu mein tanha
Ab zamaane meN kaheeN dil naheeN lagta mera
siya
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तकल्लुफ से तुमको शिकायत बहुत थी
मगर अब गिला है के बेबाक हूँ मैं 

siya
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मेरे हौसले थक ना जाये कहीं फिर
अब ऐसा न हो फिर क़दम लडखडाये

mere housle thak na jaaye kaheen fir
ab aisa na ho fir kadam ladkhdaaye

siya
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nahi ab bhrosa meri zindgi ka 
munasib ho to ek din aap 'aaye'n'

नहीं अब भरोसा मेरी ज़िन्दगी का
मुनासिब हो तो एक  दिन आप आयें
siya ........................................ 

तमन्नाओं के नाम पर देख लो तुम 
मेरी हर ख़ुशी की जली है चिताएं
tamnnao'n ke naam par dekh lo tum 
meri har khushi ki jali hai'n chitaye

siya 
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 तेरी परवरिश ने सिखाया है माँ ये 
किसी का भी नाहक न ये दिल दुखाये 

teri parvarish ne sikhaya hai ye maa 
kisi ka bhi nahak n ye dil dukhaye 

siya 
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तेरी दुआ से सभी नेमते हुई हासिल 
मगर, सताए मेरी माँ' तेरी कमी हर वक्त.

siya


खुल न पाई शऊर की आँखे 
आज तक ख़ुद से अजनबी हूँ मैं 

siya
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फूल को छूके जो आये तो महक जाये हवा
नेक सोहबत से ख्यालात बदल जाते हैं
siya
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था लबों पर सुकूते ख़ामोशी
दर्द आँखों ने कह दिया दिल का

डूब जाये जो कश्ति ए उम्मीद
ऐसा टूटा ये हौसला दिल का ..

siya
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सब मुसाफिर हैं इस सराए में
एक दिन जाना बारी बारी है

siya
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रिश्ते नातों से कट नहीं सकती
मैं हूँ इन्सां सिमट नहीं सकती
फ़र्ज़ सारे मुझे निभाने है
मैं रिवाजों से हट नहीं सकती ..

rishte_nato se kat nahi sakti
main hoon insaan simat nahi sakti
farz sare mujhe nibhane hain
main riwazon se hat nahi sakti

siya
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ज़िन्दगी कैसे दूँ मैं तेरे सवालो का जवाब
हर घडी तेरे सवालात बदल जाते हैं

siya
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उसको शिकम की आग ने करतब सिखा दिए
जो हमको ज़िन्दगी का सलीक़ा सिखा गया

रोटी की जुस्तजू में गवां दी है जिसने जान
दुनिया समझ रही हैं तमाशा दिखा गया

siya
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इस तरह से भागती हैं ज़िन्दगी रफ़्तार से
सुबह का ग़म शब् को अनजाना लगा

siya
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आह भी हैं बेअसर दिल है बहुत वीराना आज

छूट जायेगा तेरी दुनिया का ये मैखाना आज 
क्या मेरी हस्ती का भर जायेगा ये पैमाना आज 

जब सुना महफ़िल में आया है मेरा जाने_बह़ार 
वज्द में फिर आ गया है ये दिल ए दीवाना आज 

घर की दीवारों ने सुन ली है जो दिल की दास्तां
देख लेना बन के निकलेगी यही अफ़साना आज 

शाम से जलता हैं दिल बुझता नहीं वक्ते सहर 
आह भी हैं बेअसर दिल है बहुत वीराना आज

कल की कालिख के हैं कुछ धब्बे तेरे किरदार पर
अब समझ पाई हूँ मैं,तुझको भी है समझाना आज

शम्मा ख़ुद ही बुझ गयी कुछ देर तक जलने के बाद
क्या करे जाये कहा जिंदा हैं जो परवाना आज

चारसूं कोई नहीं है नूरे _ यज्दाँ के सिवा 
खोल कर तो देख लो दिल का मेरे तहखाना आज

Chhoot jaiyega teri dunya ka ye maikhana aaj
Kya meri hasti ka bhar jaiga ye paimana aaj

Jab suna mehfil mein aaya hai mera jaan e bahaar
wazd me phir aagaya hai ye dil e deewana aaj

Ghar ki deewaron ne sunli hai jo dil ki dastan
dekh lena ban ke niklegi yaheen afsana aaj

Shaam se jalta hai dil bujhta. Nahi waqt e sahar
aah bhi hai beasar,dil hain bahut veerana aaj

Kal ki kalikh ke hai’n kuch dhabbe tere kirdaar per,
Ab samajh payii hu’n mai’n tujhko bhi hai samjhana aaj.

Shamma khud hi bujh gayii kuch der tak jalne ke baad,
Kya kare jaye kaha’n zinda hai jo parvana aaj.

charsu'N koyi nahi hai noore yazdan ke siwa
khol kar to dekh lo dil ka mere tahkhana aaj ....

Saturday 7 April 2012

दामन को पाक़ रखिये गुनाहों के दाग़ से


कैसे निकले उसका तसव्वुर दिमाग से 
जिसने हमें निकल दिया दिल के बाग़ से 

काजल की कोठरी से निकलता हैं कौन साफ़ 
दामन को पाक़ रखिये गुनाहों के दाग़ से 

देखो मुझे तुम्हारा भी अंजाम है यहीं 
आवाज़ आ रहीं है ये बुझते चराग़ से 

हम दिल से काम लेते हैं सुन के दिमाग की 
तुमने हमेशा काम लिया है दिमाग से 

Kaise nakaleN uska tasawwur dimagh se
Jis ne hameN nikal diya dil ke bagh se


Kajal ki kothree se nikalta hai kaun saaf
Daaman ko pak rakhiye gunahooN ke daagh se

Dekho mujhe tumhara bhi anjam hai yehee
aawaz aa rahee hai yeh bujhte charagh se

Hum dil se kaam lete haiN sun ke dimag ki
Tum ne hamesha kaam liya liya hai dimagh se


शोला निकल गया कभी शबनम निकल गया

हसरत निकल न पाई मगर दम निकल गया 
अच्छा हुआ ये ज़िन्दगी का ग़म निकल गया

लफ़्ज़ों में अब तो आपके 'मैं का मक़ाम है
गुफ्तार से वो प्यार भरा हम निकल गया

ए इश्क तेरी सम्त नज़र जब कभी पड़ी
दिल से हमारे शुबहा -ए -पैहम निकल गया

खुद हम उलझ के रह गए ए जान ए शायरी
ग़ज़लों से हमने माना हर इक ख़म निकल गया

मुद्दत के बाद जाके हमें आया अब करार
जो कर रहा था दीदा _ए _पुरनम,निकल गया

बस मैं ही जानती हूँ मेरी आँख का मिज़ाज
शोला निकल गया कभी शबनम निकल गया

मैं शायरी के दम से ही जिंदा हूँ ए सिया
ग़र ये न हो तो समझो मेरा दम निकल गया

ज़र्फ़ वाला है तो कमज़र्फ से मिलता क्यूँ है।


इतना नाजुक हैं तो फिर घर से निकलता क्यों है|
जिस्म जलता है तो फिर धूप में चलता क्यों हैं।

रात भर यूँ ही फिरा करता हैं आवारा सा
चाँद से इतना कोई पूछे निकलता क्यों है।

तुझ को आता नहीं दुश्वारियां सहने का हुनर
तो मुसाफिर राहे दुश्वार पे चलता क्यों है।

जब तेरे साथ नहीं है कोई रिश्ता मेरा
फिर तुझे देख के दिल मेरा मचलता क्यूँ है।

क्या तुझे आज भी इन्सान की पहचान नहीं
ज़र्फ़ वाला है तो कमज़र्फ से मिलता क्यूँ है।

हम हैं हर हाल में उस शख्स पे क़ुर्बान :सिया:
जाने वो रोज़ नए रंग बदलता क्यों है 

किसी रोते हुए को ग़र हँसा दे सबब मिल जायेगा सच्ची ख़ुशी का


कहाँ दम टूटे जाये  आदमी का 
भरोसा क्या हैं तेरी ज़िन्दगी का  

जरुरत को अगर अपनी घटा ले 
समय कट जायेगा फिर मुफलिसी का 

 ग़मे दुनिया में क्यूं उलझी हुई है 
सकूं पायेगी सज़दा कर उसी का 

किसी रोते हुए को ग़र हँसा दे 
सबब मिल जायेगा सच्ची ख़ुशी का 

फ़क़त मुझको सहारा है ख़ुदा का 
सिला मिलता हैं सच्ची बंदगी का 

यकीं तो  बस ख़ुदा की जात का है 
ज़माने में कहाँ कोई किसी का 

ज़माना कब समझ पाया सिया को 
मिज़ाज अपना रहा है सादगी का 

वक़्त बेवक्त जो बे_बात बदल जाते हैं


दिल धडकता है तो नग्मात बदल जाते हैं 
इश्क़ होता है तो दिन रात बदल जाते हैं 

उसके जाते ही हवा ख़ून जलाती हैं मेरा 
और फिर शहर के हालात बदल जाते हैं 

वक़्त बदला है तो मेयार ए शिकायत बदला  
चंद लम्हों में सवालात बदल जाते हैं 

साख बनती ही नहीं उनकी कभी दुनिया में 
वक़्त बेवक्त जो बे_बात बदल जाते हैं 

वक़्त के हाथ में रहती हैं किताबे दुनिया 
और हर रोज़ ही सफहात बदल जाते हैं

फूल को छूके जो आई तो महक जाये हवा 
नेक सोहबत से ख्यालात बदल जाते हैं

अपने ख़ालिक पे सिया जिनको भरोसा ही नहीं 
मुफलिसी में वहीं हज़रात बदल जाते हैं ....

रह गयी है तेरी हर बात शिकायत बन के


जो तेरे दिल में कभी रहता था उलफ़त बन के
आज रहता  है तेरे  दिल में वो नफ़रत बन के।

किस क़दर शौक़ है इलज़ाम लगाने का तुझे
रह गयी है तेरी  हर बात शिकायत बन के

दिल में हसरत  ही रही काश के हम भी जीते
कुछ पलों के ही लिए  तेरी जरुरत बनके ।

जिस को समझी थी मसीहा वो तो क़ातिल था मेरा
सामने आया है इक तल्ख़ हकीकत बन के

जिस से इस दिल ने लगाई थी करम की उम्मीद
उस ने इस दिल पे सितम ढाए  क़यामत बन के।

ऐ सिया आज वही  बन गया पत्थर  का सनम
सामने आया था जो प्यार की मूरत बन के

आग पानी हवा जरा मिट्टी और है जिस्म के मकान में क्या


ये ना देखो की है बयान में क्या 
उसने लिक्खा है मेरी शान में क्या 

सच कहा जाये सच सुना जाये 
ऐसा होता है इस जहान में क्या 

रंग क्यूं उड़ गया है चेहरे का 
ये सबा कह गयी है कान में क्या 

जंग की ख़ू नहीं हैं ग़र तुमको
 तीर ख़ुद आ गया कमान में क्या 

तुम तो मंज़र कशी में माहिर हो 
अब दही जम गया ज़बान में क्या 

तुम मुझे रोक पाओगे बोलो 
पावं रख दू मैं आसमान में क्या 

तेरे बारे में कुछ न लिक्खू तो 
और लिखू मैं दास्तान में क्या 

आग पानी हवा जरा मिट्टी
 और है जिस्म के मकान में क्या 

मुझको रहना है ए सिया कुछ दिन
तन की मिट्टी के मर्तबान में क्या .....
ye na dekho ki hain bayan mein kya
 usne likha hain meri shan mein kya

jinki fitrat mein jhooth shamil ho
 unke dil mein hain kya jabaan mein kya


sach kaha jaye sach suna jaye
aisa hota hain is jahan mein kya


rang kyun ud gaya hai chehre ka
ye saba kah gayi hai kaan mein kya


ghar waheen hain jahan mohbbat hai
warna rakha hain is makaan mein kya


apna rishta kabhi ka tute gaya 
ab tere mere damiyaan mein kya


tum to manzar kashi mein mahir the
ab dahi jam gaya juban mein kya


tu mujhe rok paoge bolo
pavn rakh du main aasman mein kya


jung ki khoo nahi hain gar tumko
 teer khud aa gaya kamaan mein kya

 tere bare mein kuch na likhu tu
main likhu apni dastaan mein kya

aag pani hava jara mitti
aur hain zism ke maakan mein kya


mujhko rahna hai aye siya kuch din
tan ki mitti ke martbaan  mein kya



वक़्त सबसे बड़ा शिकारी है


आज का दौर सच से आरी है
 हर तरफ इक फ़रेबकारी है 

आप मेरा यकीन तो कीजे
 ये ज़मीं चाँद से उतारी 

नन्हे हाथो में एक बच्चे के 
कागज़ी नावं कितनी प्यारी है 

काम आता हैं कौन मुश्किल में 
सिर्फ मतलब की रिश्तेदारी है

मुझ में वो हौसला हैं जीने का
 मौत हर बार मुझसे हारी है

सबको इक दिन शिकार होना है 
वक़्त सबसे बड़ा शिकारी है

उससे मिलने के वास्ते ए सिया
 ये तसव्वुर भी इक सवारी है .....

जाते जाते कोई एहसान जताते जाओ


अपनी पलकों पे मेरे अश्क सजाते जाओ 
दूर रह के भी मुझे अपना बनाते जाओ 

रोशनी के लिए मैं भी हूँ परेशां लेकिन 
ये जरुरी तो नहीं आग लगाते जाओ 

मिल गया भेस में  इन्सां के फ़रिश्ता कोई 
बात ये सारे ज़माने को बताते जाओ 

इस भरी दुनिया में कोई तो है मेरा अपना 
साथ हो तुम मेरे एहसास दिलाते जाओ 

ये मोहब्बत का तक़ाज़ा तो नहीं हैं फिर भी 
जाते जाते कोई एहसान जताते जाओ 

फिर तेरे इश्क़ ने बाज़ार किया हैं मुझको 
तुम भी औरो की तरह दाम लगाते जाओ 

हक़परस्तों से गुज़ारिश है यहीं एक सिया 
मेरी आवाज़ में आवाज़ मिलाते जाओ 

apni palkoN pe mere ashq sajate jao 
door rah ke bhi mujhe apna banate jao 

roshni ke liye main bhi hoon pareshan lekin .
ye jaruri to nahi aag lagate jao 

mil gaya bhesh mein insaan ke farishta koyi
bat ye sare zamane ko batate jao 

is bhari duniya mein koyi to hain mera apna 
sath ho tum mere  ehsaas dilate jao 

ye mohbaat ka takaza to nahi hain fir bhi
jate jate koyi  ehsaan jatate jao 

fir tere ishq ne baazar kiya hain mujhko 
tum bhi auro ki tarah daam lagate jao

haqparasto  se guzarish hai yaheen ek siya 
meri aawaz mein aawaz milate jao ...

न मेरा हाल भी पूछा किसी ने


सितम ढाया है मुझ पर हर किसी ने 
बहुत उलझा दिया है ज़िन्दगी ने 

अगर संवेदना दिल में नहीं है
 तो फिर तू लाख जा काशी मदीने 

बिखर जाये न मेरा आशियाना
 बड़ी मुश्किल से तिनके तिनके बीने 

सभी की है यहाँ अपनी ही दुनिया
न मेरा हाल भी पूछा किसी ने 

कभी पल भर को घर में भी रहा कर
 किया रुसवा तेरी आवारगी ने 

मेरे मांझी ये तेरा ही करम है
 किनारों पर भी डूबे हैं सफ़ीने

sitam dhaya hai mujh par har kisi ne 
bahut uljha diya hai zindgi ne 

agar samvedna dil mein nahi hai
to fir tu lakh ja kashi madeene 

bikhar jaye n mera ashiyana
 badi mushkil se tinke tinke beene 

sabhi ki hai yahan apni hi duniya
 n mera haal bhi pucha kisi ne 

kabhi pal bhar ko ghar mein bhi raha kar
kiya rusva teri awargi ne 

mere manjhi ye tera hi karam hai
kinaro par bhi doobe hain safeene