कितना उलझा है फैसला दिल का
कैसे सुलझे मुआमला दिल का
मेरी सुनता नहीं कभी पागल
क्या खबर अब हो हाल क्या दिल का
अपना ही घर है तुम चले आओ
मैं ने रख्खा है दर खुला दिल का।
इश्क़ में बेकली ही मिलती है
हाल और होगा क्या भला दिल का
लब तो ख़ामोश ही रहे लेकिन
हाल आँखों ने कह दिया दिल का
चोट खाए मुझे ज़माना हुआ
ज़ख्म है आज तक हरा दिल का
खुद डुबो दूँ कहीं न मैं किश्ती
ऐसा टूटा है हौसला दिल का
गुम हुआ है कहाँ खुदा जाने
मुझको मिलता नहीं पता दिल का
जा! भुलाया तुझे सिया मैं ने
भूल! तू भी कहा,सुना दिल का....
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