हसरत निकल न पाई मगर दम निकल गया
अच्छा हुआ ये ज़िन्दगी का ग़म निकल गया
लफ़्ज़ों में अब तो आपके 'मैं का मक़ाम है
गुफ्तार से वो प्यार भरा हम निकल गया
ए इश्क तेरी सम्त नज़र जब कभी पड़ी
दिल से हमारे शुबहा -ए -पैहम निकल गया
खुद हम उलझ के रह गए ए जान ए शायरी
ग़ज़लों से हमने माना हर इक ख़म निकल गया
मुद्दत के बाद जाके हमें आया अब करार
जो कर रहा था दीदा _ए _पुरनम,निकल गया
बस मैं ही जानती हूँ मेरी आँख का मिज़ाज
शोला निकल गया कभी शबनम निकल गया
मैं शायरी के दम से ही जिंदा हूँ ए सिया
ग़र ये न हो तो समझो मेरा दम निकल गया
अच्छा हुआ ये ज़िन्दगी का ग़म निकल गया
लफ़्ज़ों में अब तो आपके 'मैं का मक़ाम है
गुफ्तार से वो प्यार भरा हम निकल गया
ए इश्क तेरी सम्त नज़र जब कभी पड़ी
दिल से हमारे शुबहा -ए -पैहम निकल गया
खुद हम उलझ के रह गए ए जान ए शायरी
ग़ज़लों से हमने माना हर इक ख़म निकल गया
मुद्दत के बाद जाके हमें आया अब करार
जो कर रहा था दीदा _ए _पुरनम,निकल गया
बस मैं ही जानती हूँ मेरी आँख का मिज़ाज
शोला निकल गया कभी शबनम निकल गया
मैं शायरी के दम से ही जिंदा हूँ ए सिया
ग़र ये न हो तो समझो मेरा दम निकल गया
बस मैं ही जानती हूँ मेरी आँख का मिज़ाज
ReplyDeleteशोला निकल गया कभी शबनम निकल गया
siya...kya khoob kaha hai...bas bahut khoob