Saturday 12 January 2013

प्रभु के जितने नाम पता थे हमने उतने नाम लिए

वहशत रक़्सकुना थी हरसू नफरत का पैगाम लिए 
प्रभु के जितने नाम पता थे हमने उतने नाम लिए 

जिस्म का प्याला इक दिन खाली हो जाना है जान के तुम
इतराते फिरते हो क्यूँ कर रूह का इसमें जाम लिए

तेरी तलब की धूप में दिन भर आग उगलता है सूरज
भट्टी से पीकर लौटी है शाम तुम्हारा नाम लिए

फ़र्ज़ निभाया है बेटे ने कल पहाड़ की चोटी पर
गिरने से पहले ही उसने मेरे बाजू थाम लिए

दूध की मक्खी जैसा उसने दिल से अपने दिया निकाल
जिसकी ख़ातिर मैंने अपने ऊपर सौ इलज़ाम लिए

ऊँची बाते करने वाला इंसा कितना छोटा है
मंडी में खुद को बेचा और सबसे ऊँचे दाम लिए ..

No comments:

Post a Comment