वहशत रक़्सकुना थी हरसू नफरत का पैगाम लिए
प्रभु के जितने नाम पता थे हमने उतने नाम लिए
जिस्म का प्याला इक दिन खाली हो जाना है जान के तुम
इतराते फिरते हो क्यूँ कर रूह का इसमें जाम लिए
तेरी तलब की धूप में दिन भर आग उगलता है सूरज
भट्टी से पीकर लौटी है शाम तुम्हारा नाम लिए
फ़र्ज़ निभाया है बेटे ने कल पहाड़ की चोटी पर
गिरने से पहले ही उसने मेरे बाजू थाम लिए
दूध की मक्खी जैसा उसने दिल से अपने दिया निकाल
जिसकी ख़ातिर मैंने अपने ऊपर सौ इलज़ाम लिए
ऊँची बाते करने वाला इंसा कितना छोटा है
मंडी में खुद को बेचा और सबसे ऊँचे दाम लिए ..
प्रभु के जितने नाम पता थे हमने उतने नाम लिए
जिस्म का प्याला इक दिन खाली हो जाना है जान के तुम
इतराते फिरते हो क्यूँ कर रूह का इसमें जाम लिए
तेरी तलब की धूप में दिन भर आग उगलता है सूरज
भट्टी से पीकर लौटी है शाम तुम्हारा नाम लिए
फ़र्ज़ निभाया है बेटे ने कल पहाड़ की चोटी पर
गिरने से पहले ही उसने मेरे बाजू थाम लिए
दूध की मक्खी जैसा उसने दिल से अपने दिया निकाल
जिसकी ख़ातिर मैंने अपने ऊपर सौ इलज़ाम लिए
ऊँची बाते करने वाला इंसा कितना छोटा है
मंडी में खुद को बेचा और सबसे ऊँचे दाम लिए ..
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