नवजीवन का फूल खिलाया करते थे
सब के दुःख में साथ निभाया करते थे
निश्छल प्रेम से अपने कौशल से
हर उलझी डोरी सुलझाया करते थे
मुर्दा ज़ेहनो में उम्मीद जगा कर वो
जीवन का नवगीत सुनाया करते थे
आओ उनके जैसे ही बन जाए हम
ख़ुद महके और दुनिया को महकाए हम
No comments:
Post a Comment