जो बरसों डूबे रहें हैं पठन में, चिंतन में
जला है ज्ञान का दीपक उन्ही के जीवन में
परम्पराओं की इन बेड़ियों के बोझ तले
कटी है उम्र मेरी हर घड़ी ही उलझन में
यहाँ ग़रीबों को मिलती नहीं है क्यूँ रोटी
ये-वेदना ये व्यथा बस गई मेरे मन में
इसी उमीद पे गुजरी है ज़िंदगी अपनी
कभी तो आप नज़र आयें मेरे दरपन में
बस एक फ़ूल की क़िस्मत की आरजू की थी
तमाम काँटे सिमट आये मेरे दामन में
इस एक सच को समझने में लग गयी सदियाँ
बसे है राम सिया की हर एक धड़कन में
जला है ज्ञान का दीपक उन्ही के जीवन में
परम्पराओं की इन बेड़ियों के बोझ तले
कटी है उम्र मेरी हर घड़ी ही उलझन में
यहाँ ग़रीबों को मिलती नहीं है क्यूँ रोटी
ये-वेदना ये व्यथा बस गई मेरे मन में
इसी उमीद पे गुजरी है ज़िंदगी अपनी
कभी तो आप नज़र आयें मेरे दरपन में
बस एक फ़ूल की क़िस्मत की आरजू की थी
तमाम काँटे सिमट आये मेरे दामन में
इस एक सच को समझने में लग गयी सदियाँ
बसे है राम सिया की हर एक धड़कन में
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