Wednesday 31 December 2014

नज़्म .... आगे पीछे बस तन्हाई


बीते साल ने छीना मुझसे वीर मेरा वो मेरा भाई
लगता है हर जानिब मेरे फैल गयी मेरी तन्हाई
वक़्त अचानक बदल गया है उम्र लगी है सहसा ढलने 
हाँ कहने को अपने रिश्ते भाषा इनकी लगे परायी
इतने दुःख और ज़ख्म लगे है रूह तलक है छलनी छलनी
जीवन तक कम पड़ जाएगा होगी ना दुःख की भरपाई
तन्हाई ही तन्हाई है आगे पीछे बस तन्हाई
क्या ऐसे रिश्ते होते हैं ? आँखे मिर्चों से धोते हैं
बेचैनी की सेज बिछाकर तंज़ भरे काँटे बोते हैं
हार गयी इज़्ज़त की ख़ातिर चुप चुप हूँ ग़ैरत की ख़ातिर
सब्र खड़ा है सर निहुड़ाये वरना फैलेगी रुसवाई
तन्हाई ही तन्हाई है आगे पीछे बस तन्हाई
उंगली पकड़ने वाले हाथ भी अब तो अंजाने लगते हैं
दुनिया जिन्हें मेरा कहती है वोह सब बेगाने लगते हैं
सबकी अपनी अपनी दुनिया सबके अपने अपने क़िस्से
सब के कान हुए है बहरे अपना दर्द कहूँ मैं किस से
बचपन में माँ बाप थे बिछड़े और जवानी में ये भाई
तन्हाई ही तन्हाई है आगे पीछे बस तन्हाई
कैसा दिसंबर जनवरी कैसी जीवन मिला है सो है जीना
अपना भी अब होश कहाँ है गुज़र रहा है साल महीना
इतना अरसा बीत चूका है कब बदला ये समय हरजाई
सायों से बस भरी हुई है नहीं दिलो में ज़रा समायी
तन्हाई ही तन्हाई है आगे पीछे बस तन्हाई
siya

Saturday 27 December 2014

कितने हैं ये प्यारे फ़ूल

एक चमन में सारे फ़ूल
कितने हैं ये प्यारे फ़ूल

आते जाते रोज़ यूँही 
होते हैं बंजारे फ़ूल

लूटने आया जब   कोई
बन बैठे अंगारे फ़ूल

जीवन की हर बाज़ीसे 
शर्त  कभी  न हारे फ़ूल

सबकी   ख्वाहिश होती  है 
ख़ुश्बू, चाँद, सितारे  फ़ूल

दौलत की कब  हसरत है 
सिर्फ  "सिया" को प्यारे फ़ूल 

अब मोहब्बत की राह मुश्किल हैं

नश्तरों से निबाह मुश्किल हैं 
अब मोहब्बत की राह मुश्किल हैं

कैसे देखूं मैं ज़िंदगी तुझको 
रात काली सियाह  मुश्किल हैं 

यूं तो हर शय मिली मगर मुझको 
एक  तेरी पनाह मुश्किल हैं 

दे  गी  दुनिया तो मश्वरा लेकिन 
एक उसकी सलाह मुश्किल है  

अब "सिया" ज़िन्दगी के साथ चलो 

उनकी हम पर निगाह, मुश्किल है

वो हमें जान के रुलाता है


दास्ताँ अपनी जो सुनाता हैं 
वो हमें जान के रुलाता है 

वो शहनशाह  है मोहबत का 
ताज को जो महल बनाता है

रूप  उसका अजब सही लेकिन 
दिल में एहसास वो जगाता है 

उसकी ग़ज़लों की धुन बनाती हूँ
उसका मेरा अजीब नाता है 

अपने आंसू छुपा के पीता है
प्यास ऐसे ही वो बुझाता है

इक मुसव्विर है या कि है आशिक़
मेरी तस्वीर जो बनाता है 

आदमी क्यूं हो गया पत्थर बता

ऐ खुदाया ऐ मेरे परवर बता
आदमी क्यूं हो गया पत्थर बता

तू समंदर है मुझे ये इल्म है
मैं भी हूँ दरिया मुझे पीकर बता

हर तरफ ऊंची इमारत हैं फ़क़त
तू मुझे इंसान का इक घर बता

क्या अभी इंसान है मुझमें कोई
दिल को मेरे बस यही छूकर बता

लोग तो सब फ़ूल लेकर चल दिए
क्यूं मेरे हिस्से में हैं नश्तर बता.

हर घड़ी रहता है आँखों में क्यों चेहरा तेरा

मुंसलिक है रग ए जां से कोई रिश्ता तेरा 
हर घड़ी रहता है आँखों में क्यों चेहरा तेरा 

मेरी तक़दीर में हरगिज़ नहीं लिक्खा होगा 
सब बुरा हो मेरा हर काम हो अच्छा तेरा 

तूने अफवाह उड़ा  दी है कि मैं हार गयी 
मैं भी दुनिया पे अयाँ कर दूंगी धोका तेरा 

जा तुझे वक़्त दिया ढूँढ ले मुझसे बेहतर 
तुझको मुझसा न मिलेगा कोई अपना तेरा 

उस घडी कहना मुझे दर्द ए जुदाई क्या है 
छोड़ कर जाएगा जिस दिन तुझे अपना तेरा 

Friday 12 December 2014

फ़रेब ए आरज़ू ही खा रही हूँ

फ़रेब ए आरज़ू ही खा रही हूँ 
मैं अपने आप को झुठला रही हूँ

किसी  के ग़म में घुलती  जा रही हूँ 
संभल जा दिल तुझे समझा रही हूँ 

मेरे ग़म दर्द आहें और आंसू 
इन्ही से खुद को मैं बहला  रही हूँ 

इन्ही सदमों का दिल पे बोझ लेकर 
तुम्हारी ज़िंदगी से जा रही हूँ

किसी के नाम से रुसवा रही हूँ
किसी को चाह के पछता रही हूँ

ये चाहत,ये वफायें ये तड़पना
मैं इनके नाम से घबरा रही हूँ

हैं क्यूँ उलझे हुए रिश्तों के धागे
इसी उलझन को मैं सुलझा रही हूँ

कोई साथी कोई महरम नहीं था
भरी दुनिया में भी तन्हा रही हूँ

समझना ही नहीं जो चाहता कुछ
उसी पत्थर से सर टकरा रही हूँ

ख़लिश बन कर खटकते हैं जो अब भी
उन्ही ज़ख्मो को मैं सहला रही 




नज़्म ---उदासी से भरा आलम



वही हैरान सी ख़ामोशियाँ है
वही चारों तरफ मायूसियाँ है 
लगे सिमटा हुआ हर एक लम्हा 
हाँ तन्हा जिस्म और ये जान तन्हा 
बहुत बेरंग सा मौसम लगे है 
उदासी से भरा आलम लगे है 
 मेरे दिल की चुभन जाती नहीं है 
कोई भी शय मुझे भाती नहीं है 
वो उठ कर रात को चुपचाप रोना 
फिर एहसासों को लफ़्ज़ों में पिरोना 
गिनू घड़िया कटेगी रात ये कब 
सह्ऱ की आस में बैठी हूँ मैं अब 

न जाने कब वो आएगा सवेरा 
कि ये जीना, मुकम्मल होगा मेरा 

wahi hairan si khamoshiya.n hai
wohi  chaaron taraf maayusiya. n hai 
lage  Simta hua  har ek lamha
hain tanha jism aur ye jaan tanha 
bohot berang sa mausam lage  hai 
udasi se bhara aalam lage hai 
mere dil ki chubhan jati nahi hai
koyi bhi shay mujhe bhati nahi hai
wo uth kar raat ko chupchap rona
phir ehsaso'n ko lafzo'n mein pirona
ginu ghadiya kategi raat ye kab 
Sehr ki aas mein baithi hoon main ab 

na  jaane  kab wo aaey ga sawera 
ki  ye jeena ... ,mukammal hoga  mera  




Monday 8 December 2014

आपका साथ बा ख़ुदा है ना !

ख़वाब आँखों ने इक बुना है ना !
आपका साथ बा ख़ुदा है ना !
मेरी मरती हुई उम्मीदों को
ज़िंदगी का दिया पता है ना !
गुमशुदा थी कई ज़माने से
मुझ को मुझसे दिया मिला है ना !
वक़्त की आग ने जला कर यूँ
तुमको कुंदन बना दिया है ना !
थी खुले सायबान की चाहत
तुमने रास्ता दिखा दिया है ना !
दिल भी अपनी तरफ झुका लेना
मैंने सर तो झुका लिया है ना !
जिस्म हारा है जान बिस्मिल है
मेरी उल्फत का ये सिला है ना
फिर रही थी तलाश ए हस्ती में
मेरी मंज़िल का तू पता है ना !
khwaab ankho ne ik buna hai na !
aapka saath bakhuda hai na !
Meri marti hui umeedoN ko
zindgi ka diya pata hai na !
gumshuda thi main ik zamane se
mujhko mujhse diya mila hai na !
waqt ki aag ne jala kar yun
tumko kundan bana diya hai na !
dil bhi apni taraf jhuka lena
maine sar to jhuka liya hai na
thi khule saaibaan ki chahat
tumne rasta dikha diya hai na !
jism hara hai jaan bismil hain
meri ulfat ka ye sila hai na !
phir rahi thi Talaash-e-hasti mein
meri manzil ka tu pata hai na !
siya

Sunday 7 December 2014

मेरा दामन तो दाग़दार नहीं

मेरा दामन तो दाग़दार नहीं 
इसलिए ख़ुद से शर्मसार नहीं  
 
लफ्ज़ का हम न कर सके सौदा 
ये हमारा तो कारोबार नहीं 

देखते हो पलट पलट कर क्यों 
मेरा चेहरा है इश्तेहार नहीं 

हाले दिल इत्मिनान से कहिये
मुत्मुइन हूँ मैं बेक़रार नहीं

रूह पर बोझ ज़िंदगी का हैं
मौत पर कोई इख़्तियार नहीं
लोग गम है हवसपरस्ती में
ख़ूनी रिश्तों में भी तो प्यार नहीं

ख़त्म जब राब्ते हुए सारे
फिर किसी का भी इंतज़ार नहीं

Sunday 30 November 2014

हर कोई अपना आप गिनाने में रह गया

हर सिम्त तमाशा ही ज़माने में रह गया 
हर कोई अपना आप गिनाने में रह गया 

इल्ज़ाम सिर्फ़ मुझपे लगाता रहा है वो 
मेरा ही नाम सारे ज़माने में रह गया ?

ख़ुद अपने आपको नहीं देखा टटोल कर 
वो दूसरों के पाप गिनाने में रह गया 

दुनिया में नफरतों के अलावा है और कुछ 
क्या बस ख़लूस मेरे घराने में रह गया ?

कब की निकाल दी है ये दुनिया तेरे लिए 
इक तेरा नाम दिल के ख़ज़ाने में रह गया 

हासिल हुई थी, उसने मगर खो दिया मुझे 
फिर उसके बाद वो मुझे पाने में रह गया 

खिड़की पे बैठी सोच रही थी वो कुछ कहे 
गाड़ी चली वो हाथ हिलाने में रह गया 

मंज़िल पे गामज़न थे ये मेरे क़दम सिया 
वो रस्ते से मुझको हटाने में रह गया 

Har simt tamasha hi zamane mein rah gaya
Har koi apna aap dikhane mein  rah gaya

Ilzaam sirf mujh pe lagata raha hai wo
mera hi naam saare zamane mein  rah gaya???

khud apne aap ko nahi dekha tatol kar 
wo Doosron ke paap ginane mein rah gaya 

Duniya me nafrato.n ke ilawa hai aur kuch
Kya bas khuloos mere gharaane mein rah gaya ?

Kab ki nikaal di hai ye duniya tere liye
Ik tera naam dil.ke khazane mein rah gaya

Hasil huwi thee ..uss ne magar kho diya mujhe ..
Phir uske baad wo mujhe paane mein  rah gaya

 manzil pe gamzan the ye mere qadam siya 
wo raste se mujhko hatane mein rah gaya

चंद लम्हों की ख़ुशी थी जो चुराई मैंने

ख़ुद को जीने की अदा यूँ भी सिखाई मैंने 
चंद लम्हों की ख़ुशी थी जो  चुराई मैंने 

साथ चलती रही मेहरुमियां हरदम मेरे 
ज़िंदगी तुझसे बहुत खूब निभायी मैंने 

उसकी रुस्वाई से घर की मेरे  रुस्वाई है 
उसकी  हर बात जो है ऐब छुपाई मैंने 

कोई उम्मीद न ख़्वाहिश, तकाज़ा तुझसे  
अपनी हर बात ही सीने में  दबायी मैंने 
 
लेके एहसान ये उसका मैं सिया क्या करती 
आग ख़ुद अपनी ही अर्थी को  लगायी मैंने 


Wednesday 26 November 2014

दरमियाँ कितने ज़माने आये


फिर वो मौसम न सुहाने आये 
दरमियाँ कितने ज़माने आये 

काश टूटे तो किसी तौर जमूद 
कोई दीवार गिराने आये 

रंज ओ ग़म पर ये तमाशाई मिरे 
जश्न मातम का मनाने आये

मेरी ख़ुद्दारी ने मुँह मोड़ लिया 
मेरे क़दमों पे ख़ज़ाने आये 

उम्र लम्हों में सिमट आई थी 
आप जब मुझको मनाने आये 


घर किराये का है फ़ानी दुनिया 
चार ही दिन तो बिताने आये 



Phir wo mausam na suhaane aaye.
Darmiyaa'n kitne zamaane aaye.

Kaash toote to kisi taur jamood.
Koi deewaar giraane aaye .

Ranj-o-gham par ye tamaashai mire 
jashn maatam ka manane aaye

Meri khuddari ne munh mod liya .
Mere qadmo .n pe khazane aaey

Umr lamho 'n me simat aayi thee .aap jab mujh ko manane aaye


Ghar kiraaye ka hai faani duniya
Char hi din to bitaane aaye.



siya

Monday 24 November 2014

कब तअल्लुक़ तेरा ग़ैरों से गवारा है मुझे

तुझ से रिश्ता है जो वो जान से प्यारा है मुझे
कब तअल्लुक़ तेरा ग़ैरों से गवारा है मुझे

सारी ख़ुशियाँ मेरी वाबस्ता हैं तेरे दम से 
एक तेरा ही तो दुनिया में सहारा है मुझे 

मैंने जिस तरह भी बरता है तुझे, जाने दे 
ज़िन्दगी तूने अजब तौर गुज़ारा है मुझे 

मुझ पे दुनिया की खुली तल्ख़ हक़ीक़त जब से 
दर्द ने गहरे समंदर में उतारा है मुझे 

जाने किस सोच में बैठी थी मैं तन्हा  यूँ ही 
कैसी आहट सी हुई किसने पुकारा है मुझे 

जीत जाने की ख़ुशी ख़ाक हुई पल भर में 
हाँ सिया उसने बड़ी शान से हारा है मुझे 

tujh se rishta hai jo wo jaan se pyaara hai mujhe
Kab ta'alluk tera ghairon se gawara hai mujhe

Sari khushiyan meri wabasta hain tere dam se
ek tera hi to dunniya mein sahara hai mujhe

main ne jis taraha bhi barta hai tujhe, jaane de
zindagi tu ne ajab tour guzara hai mujhe

mujh pe duniya ki khuli talkh haqeeqat jab se
dard ne gahre samandar me utara hai mujhe

Jane kis soch mein baithi thi main tanha yun hi
kaisi aahat si hui kisne pukaara hai mujhe

jeet jaane ki khushi khaak hui pal bhar mein 
haan siya usne badi shaan se haara hai mujhe 

siya sachdev

Saturday 22 November 2014

मेरे पैरोँ तले ज़मीं भी है

कुछ गुमाँ भी है कुछ यक़ीं भी है 
मेरे पैरोँ तले ज़मीं भी है 

वहशत ए दिल का क्या करूँ मैं ईलाज
पास है और वो नहीं भी है 

जा बजा उसको ढूढ़ती हूँ मैं
और मेरे दिल में वो मक़ीं भी है

ज़िंदगी तेरा ऐतबार नहीं
मौत पर तो मुझे यक़ी भी है

ये तो अच्छा नहीं तरीक़ा भी 
हाँ भी करते हो और नहीं भी है 

मैं पुजारन हूँ वो है रब मेरा 
ढूँढ लूँगी जहाँ कहीं भी है 

क्यों ख़फ़ा रहती है सिया ख़ुद से 
देख दुनिया बड़ी हसीं भी है 


kuchh gumaaN bhi hai kuchh yaqeeN bhi hai
mere pairoN tale zameeN bhi hai

wahshat e dil ka kya karu'n main ilaaj
paas hai aur wo nahi'n bhi hai 

 ja baja usko dhudhnti hoon main 
aur mere dil mein wo Maqee'N bhi hai 

zindgi tera aitbaar nahi 
  Maut par to mujhe Yaqee'n,Bhi Hai

 ye to acha nahin  tarika bhi 
haan bhi karta hai aur nahiN bhi hai


main pujaran hoon rab hai tu mera
dhudh lungi jahan kaheen bhi hai 

kyun khafa rahti hai siya khud se 
dekh duniya badi hansi bhi hai



Thursday 20 November 2014

अब तरसते हैं मुस्कुराने को

खेल समझे थे दिल लगाने को 
अब तरसते हैं मुस्कुराने को
मुस्तैद है हँसी उड़ाने को 
आग लग जाए इस ज़माने को 

एक लम्हे में याद आती है 
मुद्दतें चाहिये भुलाने को 

आप महफ़िल सजाइये अपनी 
हम है तैयार दिल जलाने को 

जिनके अंदर हैं खामियाँ लाखों 
ऐब आये मेरे गिनाने को 
khel samjhe the dil lagane ko 
ab tarasate hain muskuraane ko 

"Mustayad hai hansi udaane ko 
aag lag jaaye is zamaane ko 

ek lamhe mein yaad aati hai
muddaten chahiye bhulaane ko 

aap mehfil sajaiyen apni 
hum hai taiyaar di jalane ko

jinko andar hain khamiya.n lakho'n 
aib aaye mere ginanae ko 

Tuesday 18 November 2014

यहीं सोचती हूँ की क्या बात होगी

कभी आपसे जो मुलाक़ात होगी
यहीं सोचती हूँ की क्या बात होगी
भले दूर होंगे वोह मेरी नज़र से
मगर याद उनकी मिरे साथ होगी
मेरा दिल दुखाया तो ये जान लेना
इन आँखों से अश्कों की बरसात होगी
किसी की शिकायत करूँ भी तो कैसे
मेरे सामने खुद मेरी ज़ात होगी
जुबां बंद कर लीजिये होगा बेहतर
ज़ुबाँ मैं जो खोलूं बहुत बात होगी
इसी मशग़ले में गुज़रती है घड़ियाँ
अभी दिन ढलेगा अभी रात होगी
तेरे अश्क मैं अपने दामन में भर लूँ
मोहब्बत की ये भी तो सौग़ात होगी
सिया ये मुक़द्दर के हैं खेल सारे
किसे शह मिलेगी किसे मात होगी
kabhi aapse jo mulaqat hogi
yaheen sochti hoon ki kya baat hogi
Bhaley door hongey woh meri nazar se
Magar yaad unki mire saath hogi
mera dil dukhya to ye jaan lena
in aankhon se ashkon ki barsaat hogi.
Kisi ki shikayet karu'n bhi to kaise ?
Mere samne khud meri zaat hogi
zaba'N band kar lijiye hoga behter
zaba'n main jo kholu'n bahot baat hogi
Isi masghaley meiN guzarteeN haiN ghadiyaaN
Abhi din dhalega abhi raat hog
tere ashk main apne daaman mein bhar lu'n
mohbbat ki ye bhi to saughat hogi
siya ye Muqddar ke hai'n khel saare
kisey shah milegi kisey maat hogi

Monday 17 November 2014

वो उंगुलियों पे हर एक दिन शुमार करता है

mufaailaatun faoolun mufaailun felun..
12121... 122.... 1212... 22

बिछड़ के मुझसे मेरा इंतज़ार करता है
वो उंगुलियों पे हर एक दिन शुमार करता है
बिछा दिया मिरी राहों में अपना दिल तूने
ये काम वो है जो इक जाँ _निसार करता है
कोई सितारा ए सहरी है या मेरी यादे
कोई तो है जो उसे बेक़रार करता है
उबूर करता है हर इक भंवर को तेरा ख्याल
बगैर नाव के दरिया को पार करता है
यहाँ तो जिसकी ज़ुबाँ पर मैं ऐतबार करूँ
वोही यक़ीं को मेरे तार तार करता है
दुखा के दिल को तेरे आया कब क़रार मुझे
मिरा ज़मीर मुझे शर्मसार करता है
ताल्लुक़ात में दौलत न लाइयें साहेब
ये पैसा रिश्तों में पैदा दरार करता है
वो दुश्मनों के इरादों को भांप कर उन पर
बड़े सधे हुए हाथो से वार करता है
सिया मैं जान भी दे दू तो इससे क्या होगा
वो दोस्तों में मुझे कब शुमार करता है
bichhad ke mujhse mera intzaar karta hai
wo unguliyo'n pe har ek din shumaar karta hai
bichha dia miri raho'n meiN apna dil tune
ye kam wo hain jo ik jaan_nisaar karta hai
koyi sitara e sahri hai ya meri yaadeN
koyi to hai jo use beqarar karta hai
uboor karta hai har ik bhaNvar ko tera khayal
bagair naav ke dariya ko paar karta hai
yahan to jiski zubaan par main aitbaar karun
wohi yaqee'N ko mere taar taar karta hai
dukha ke dil ko tere aaya kab qaraar mujhe
mira zameer mujhe sharmsaar karta hai
ta,alluqat me daulat na layiye saheb..
ye Paisa rishto mein paida darar karta hai
wo dushmano ke irado ko bhanp kar un par
bade sadhe hue hatho se waar karta hai
siya main jaan bhi de du to isse kya hoga
wo dosto mein mujhe kab shumaar karta hai
siya sachdev

Friday 14 November 2014

अपना चैन ओ सुकूँ गवाती हो

failatun ...mufaelun failun ..



सोच में किस की डूब जाती हो 
अपना चैन ओ सुकूँ गवाती हो 

करके  तश'हीर राज़ की अपनी 
तुम ज़माने को क्यूँ सुनाती हो 

जब भी होती हो तुम उदास बहुत 
बेसबब यूँही मुस्कुराती हो 

बैठ तन्हाइयों के साये में 
दर्द के गीत गुनगुनाती हो 

हौसला तुमसे सबको मिलता हैं
अज़्म जीने का तुम सिखाती हो 

किस क़दर है तुम्हें सुख़न का जुनूँ 
अपनी हस्ती को भूल जाती हो 

फैलती जा रही है रुस्वाई 
राज़दाँ सबको क्यूँ बनाती हो 

soch mein kiski doob jaati ho 
  apna  chain o sukooN gawati ho

karke tash’heer raaz ki apni  
tum  zamane ko kyun sunaati ho 

jab bhi hoti ho tum udas bahut 
besabab yuheen  muskurati ho 

baith Tanhaiyon Ke Saaye Mein
dard ke geet gungunaati ho 

hausla tumse sabko milta hain 
azm  jeene ka tum sikhati ho

kis qadar hai tumeh sukhan ka junoo'N 
apni hasti ko bhool jaati ho 

phailati ja rahi hai rusvai 
raazdaa'n  sabko kyun banati ho 

नज़्म --- मोहब्बत ये अधूरी है


वो इक दीवाना सा लड़का
ये किससे प्यार कर बैठा
नहीं सोचा कभी उसने 
किसी की वो अमानत है
किसी के घर की इज़्ज़त है
समझता क्यों नहीं है वो
नहीं मुमकिन ये चाहत है
ये रस्मों से बग़ावत है
क्यूँ अपना दिल दुखाता है
उसे पहरों मनाता है
परस्तिश उसकी करता है
क्यों उसको प्यार करता है
उसी को सोचता है क्यों
उसी को चाहता है क्यों
क्यों करता है वो नादानी
किसी की एक ना मानी
वो जिसका पाक दामन है
परेशान है वो हैरां है
वो बेबस कह नहीं पाती
तेरा दुःख सह नहीं पाती
किसी की राह में कांटे
कभी वो बो नहीं सकती
बस इतना तुम समझ लेना
तुम्हारी हो नहीं सकती
nazm''----Mohabbat ye Adhuri hai
wo ik dewana sa ladka
ye kise pyaar kar baitha
nahi socha kabhi usne
kisi ki wo amanat hai
kisi ke ghar ki izzat hai
samjhta kyun nahi hai wo
nahi mumkin ye chahat hai
ye rasmo'n se -Bagawat hai
kyun apna dil dukhta hai
use pahro'n manata hai
Parastish uski Karta hai
kyun usko Pyar Karta hai
Usi ko sochta hai kyun
usi ko chahta hai kyun
kyun karta hai wo nadaani
kisi ki ek na maani
wo jiska Pak-daaman hai
pareshan hai wo hairan hai
wo Be-Bas kah nahi paati
tera dukh sah nahi paati
kisi ki raah mein kante
kabhi wo bo nahi sakti
bus itna tum samjh lena
tumahari ho nahi sakti
siya sachdev

Sunday 9 November 2014

नज़्म--हाल ए नासाज़


तन पे ओढ़े हुए चादर ग़म ए तन्हाई की
आज बीमार मैं बिस्तर पे पड़ी सोचती हूँ 
हाल नासाज़ है मेरा ये बताऊ किसको
अपनी तकलीफ़ परेशानी सुनाऊ किसको
जब सहा जाता नहीं दर्द तो उठ जाती हूँ
और फिर उठ के दवा ज़हर सी मैं खाती हूँ
कोई हमदर्द तो होता कहीं नज़दीक मेरे
देखकर दर्द मेरा वो भी परेशां होता
हाथ से अपने दवा देता, सहारा देता
यूँ न घबराओ मुझे कहता दिलासा देता
ठीक हो जाओगी अपने को सम्भालो थोड़ा
और इसरार ये करता चलो खा लो थोड़ा
इस ज़माने में हुई किसकी तमन्ना पूरी
कौन बदहाल की समझा है यहाँ मजबूरी
nazm -- haal-e-nasaaz
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tan pe odhe hue chadar gham e tanhayi ki
aaj beemar main bistar pe padi sochti hoon
haal nasaaz hai mera ye batatu kisko
apni takleef, pareshani sunau kisko
jab saha jata nahin dard to uth jaati hoon
aur phir uth ke dawa zehar si main khati hoon
koyi humdard to hota kaheen nazdeek mere
dekhkar dard mera wo bhi Pareshaa'n hota
Haath Se apne dawa deta,sahara deta
yun na Ghabrao mujhe kahta dilasa deta
theek ho jaogi apne ko sambhalo thoda
aur israar ye karta chalo kha lo to thoda
is zamane mein hui kiski tamnna puri
kaun badhaal ki samjha hai yahan majburi
siya sachdev