ग़म न अश्कों में यूं ढालना चाहिए
आँसुओं की नदी रोकना चाहिए
आपको ये ज़रा सोचना चाहिए
राह ए उल्फ़त में तुम साथ दोगे मेरा
उनसे इक बार ये पूछना चाहिए
माँ के जैसा नहीं कोई दूजा यहाँ
रब से पहले उसे पूजना चाहियें
आज आगे जो इतना निकल आये हैं
पीछे मुड़ के भी अब देखना चाहिए
रोज़ कहती हैं कुछ कुछ नया ज़िंदगी
रोज़ ही कुछ नया सीखना चाहिए
फ़िक्र ए दुनिया से निकली तो फिर ये लगा
अपने बारे में भी सोचना चाहिए
इतनी शिद्दत से क्यूँ मैंने चाहा उसे
कुछ तो अच्छा बुरा सोचना चाहिए
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