Thursday 27 March 2014

वो शख्स झूठ बोल के मुझसे जुदा हुआ

    क़ुर्बत के बावजूद भी क्यूँ फ़ासला हुआ 
    था अपने दरमयां जो ताल्लुक वो क्या हुआ 

    जिस का हर एक लफ्ज़ मैं सच मानती रही 
    वो शख्स झूठ बोल के मुझसे जुदा हुआ 

    मेरे यक़ी के साथ कोई खेलता रहा 
    लो दिल के साथ फिर से मेरे हादसा हुआ 

    इक वो के जैसे कोई तिजारत में कामयाब 
    और एक मैं के जैसे हो कोई ठगा हुआ

    रिश्ता ये बोझ ही था जिसे ढो रहे थे हम
    अच्छा है ये की आज से रस्ता जुदा हुआ

    कच्चे घड़े पे नाज़ किया तुमने किस लिए
    सोचा नहीं हैं वक़्त का दरिया चढ़ा हुआ

    कड़वी लगेगी बात अगर सच कहा तुम्हें
    हमने तो इसलिए है अभी मुँह सिया हुआ..

    qurbat ke bawajood bhi kyun faasla hua
    Tha apne DarmiyaN jo tAlluq wo kya hua.

    jis ke har eak lafz main sach maanti rahi
    wo shaks jhoot bol ke mujh se juda huwa

    mere yaqeen ke sath koyi khelta raha
    lo dil ke sath phir se mere haadsa hua

    ik wo ke jaise koyi tijarat mein kamyaab
    aur ek main ke jaise ho koyi thaga hua

    rishta ye bojh hi tha jise dho rahe the hum
    achcha hai ye ki aaj se rasta juda hua

    kachche ghadhe pe naaz kiya tum ne kis liye
    socha nahi ..hai'n waqt ka darya chadha huwa

    kadvi lage gi baat agar sach kaha tumhe
    ham ne to iss liye hai abhi monh siya huwa .

Saturday 22 March 2014

वैसे इक दिन मौत से भी तो आलिंगन आवश्यक है,

जैसे जीवन से साँसों का ये बंधन आवश्यक है,
वैसे इक दिन मौत से भी तो आलिंगन आवश्यक है,

धूल अगर जम जाये तो फिर खुद ही उसको साफ़ करो
जो असली तस्वीर दिखाये वो दर्पण आवश्यक है

दया, अहिंसा क्षमा, मैत्री का हो समावेश जिस में
उसी ह्रदय से करुणा का भी आलिंगन आवश्यक है

दुर्भावों और दुर्विचार से मन को मलिन न करना तू
शब्द मुखर होने से पहले ही मंथन आवश्यक है ।

सुखद और उज्जवल भविष्य का मार्ग तुम्हें यदि पाना हो
कर्मभूमि चुनने से पहले भी चिंतन आवश्यक है

जीवन सुखमय हो जाता है अनुशासन से प्राणी का 
लेकिन इच्छा शक्ति में हर पल संवर्धन आवश्यक है ।

अभिनव ज्ञान ज्योति से अपने मन आँगन को चमकाओ
नयी चेतना लाना हो तो परिवर्तन आवश्यक ह

Thursday 20 March 2014

नज़्म तल्ख़ यादें



मैं अपनी ज़िंदगी की तल्ख़ यादें 
सिरे से भूल जाना चाहती हूँ 
किसी के हिज्र में रोई बहुत थी 
मगर अब मुस्कुराना चाहती हूँ 
मैं सब कुछ भूल जाना चाहती हूँ 

मैं समझी जिसको चाहत ज़िंदगी की 
उसी ने मुझसे ऐसी दिल्लगी की 
मैं उसके, वो मेरे क़ाबिल नहीं था
के इस रिश्ते में कुछ हासिल नहीं था
निजात उस ग़म से पाना चाहती हूँ
मैं सब कुछ भूल जाना चाहती हूँ

ख़बर पहले से ही ये काश होती
के वो लफ्जों से ही बस खेलता है
मेरा दिल भी शिकार उसका नया है
वो शातिर है वो ताजिर है यक़ीनन
वो दिल छलने में माहिर है यक़ीनन
सबक उसको सिखाना चाहती हूँ
मैं सब कुछ भूल जाना चाहती हूँ

न होंगे रायगां अब मेरे जज़बे
न पीछा अब करेंगे ये अँधेरे
नया सूरज निकल कर आएगा फिर
नयी इक सुब्ह लेकर आएगा फिर
उजालों को मैं पाना चाहती हूँ
मैं अपनों से निभाना चाहती हूँ
मैं सब कुछ भूल जाना चाहती हूँ

main apni zindgi ki talkh yaadeN
sire se bhul jana chahti hoo'N
kisi ke hijr mein royi bahut thi
magar ab muskurana chahti hoon
main sab kuch bhul jana chahti hoon

main samjhi jisko chahat zindgi ki
usi ne mujhse kaisi dillagi ki
main uske, wo mere qabil nahin tha
ke is rishte se kuch haasil nahi tha
nijaat us gham se paana chahti hoon
main sab kuch bhul jana chahti hoo

kahbar pahle se hi ye kash hoti
ke wo lafzo'n se hi bus khelta hai
mera dil bhi shikaar uska naya hai
wo shatir hai wo tajir hai yaqeenan
wo dil chalane mein mahir hai yaqeenan
sabak usko sikhana chahati hoon
bahut ab door jana chahti hoon
main sab kuch bhul jana chahti hoon

na honge rayega'n ab mere jazbe'n
na ab kare'nege ye andhre
naya suraj nikal kar aayega phir
nayi ik subh lekar aayega phir
ujalao ko main pana chahti hoon
main apno se nibhana chahti hoon
main sab kuch bhul jana chahti hoon
..

Tuesday 18 March 2014

जिन्दा हूँ ज़िंदगी की उमंगों के साथ साथ

दुनिया में सारे प्यार के रिश्तों के साथ साथ 
जिन्दा हूँ ज़िंदगी की उमंगों के साथ साथ 

मिलता है मुझसे जो भी वो होता है पाक रूह 
रहती हूँ आज कल मैं फ़रिश्तों के साथ साथ 

बेताबियाँ भी पैंग बढाती हैं दिल की सब 
आँखों में इंतज़ार के लम्हों के साथ साथ 

मैं आ गयी हूँ आज ये कैसे दयार में 
लाशें पड़ी हुई हैं दुपट्टों के साथ साथ

दिल तोड़ने का ख़ब्त नहीं है जहाँ पनाह
मैं खेलती हूँ अब भी खिलौनों के साथ साथ

आँखों से मेरी अश्क़ गिरे हैं तमाम रात
पतझड़ के टूटते हुए पत्तों के साथ साथ

जब भी सिया उठाती है अपने क़दम तो फिर
मंज़िल पुकार लेती है रस्तों के साथ साथ

duniya mein saare pyaar ke rishto'n ke sath sath
jinda hoon zindgi ki umango'n ke sath sath

milta hai mujhse jo bhi wo hota hai paak rooh
rahti hoon aaj kal main farishto'n ke sath sath

betabiya'n bhi peng badhati hai'n dil ki sab
aankho'n mein intzaar ke lamho'n ke sath sath

main aa gayi hoon aaj ye kaise dayaar mein
laashe padi hui hai'n duptto'n ke sath sath

dil todne ka khbat nahi'n hai jahan panah
main khelti hoon ab bhi khilono"N ke saath

aankhon se meri ashq gire hai'n tamam raat
Patjhad Ke Toot'te Huye Pat'to'n Ke Sath Sath

main aa gayi hoon aaj ye kaise dayaar mein
laashe padi hui hai'n duptto'n ke sath sath

dil todne ka khbat nahi'n hai jahan panah
main khelti hoon ab bhi khilone ke saath

jab bhi siya uthati hai apne qadam to phir
manzil pukaar leti hai rasto'N ke sath sath

Sunday 2 March 2014

फिर इस माहौल में कैसे गुज़र है

dara sahma hua sa har bashar hai 
phir is mahoul mein kaise guzar hai 

sarapa dard se lipti udaasi 
yahaN aaNsu bahati raat bhar hai 

kabhi khul ke haNsi aati nahiN ab 
lagi kiski buri mujhko nazar hai

Dayar-e-Gair Mein kyun aa gayi hoon
koyi sunta nahiN meri idhar hai

shikayat kya kisi se hum kareN jab
hamare haal ki unko khabar hai

डरा सहमा हुआ सा हर बशर है
फिर इस माहौल में कैसे गुज़र है

सरापा दर्द से लिपटी उदासी
यहाँ आंसू बहाती रात भर है

कभी खुल कर हँसी आती नहीं अब
लगी किसकी बुरी मुझको नज़र है। ...

दयार ए ग़ैर में क्यूँ आ गयी हूँ
कोई सुनता नहीं मेरी इधर है

शिकायत क्या किसी की हम करे जब
हमारे हाल की उनको खबर है

Saturday 1 March 2014

दर्द थम जाएगा लगते नहीं आसार अभी



हादसे गुज़रे है दिल पर मेरे दो चार अभी 
दर्द थम जाएगा लगते नहीं आसार अभी 

 याद आयी है तेरी फिर मुझे इक बार अभी 
भूलना तुझको मुझे लगता है दुश्वार अभी 

हमने हर चंद सवालों का दिया चुप से जवाब 
फिर भी लफ़्ज़ों की  तेरे कम न हुई धार अभी 

उसने हमदर्दी  का इज़हार किया प्यार नहीं 
लो बिखरने लगे रिश्तों के सभी तार अभी 

 फ़र्क पड़ता नहीं उसको तेरी बर्बादी से 
 यूँ किया मुझको सहेली ने ख़बरदार अभी 

वो हर इक बात का मफ़हूम बदल देता है 
उससे कुछ कहना सिया है तेरा बेकार अभी