Saturday 28 June 2014

hindi ghazal ......फिर भी त्रुटियों की बड़ी आलोचना है

यूँ तो  हर व्यक्ति ही त्रुटियों से बना है 
फिर भी  त्रुटियों की बड़ी आलोचना है 

कर्म की विश्राम तो अवहेलना है 
चैन की इक साँस लेना भी मना है 

दीप  आशा का कभी बुझने न देना 
सुन',घने तम से उजाला ही छना है 

है नयी कृति में समाहित कोई सपना 
हर नए चिंतन के पीछे कल्पना है 

क्या करेगा शत्रु यदि ईश्वर न चाहे 
बज रहा है जो बहुत थोथा चना है 

ढालना है उसको अब कविता में अपनी  
शब्द जो मैंने विचारों से चुना है 

स्वार्थ से आराधना है दूर मेरी 
मन में निश्छल प्रेम की ही भावना है 

 अग्रसर हो उन्नति के पथ पे बच्चें 
इस नयी पीढ़ी से ही संभावना है 

इस नदी में डूब कर मोती मिलेंगे 
योग है कविता "सिया" का मानना है 

2 comments:

  1. सुन्दर शब्द विन्यास...आनंद आ गया...

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  2. Vaanbhatt ji hauslah afzayi aur pur khuloos daad ke liye tahe dil se aap ki behad shukrguzar hu.n salamati ho

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