Sunday 19 April 2015

तेरा फरेब मुझे रौशनी में ले आया

अजब सा शोर मेरी ख़ामशी में ले आया 
वो खींच कर मुझे फिर ज़िंदगी में ले आया 

भले ही देर से लेकिन खुली तो हैं आँखे 
तेरा फरेब मुझे रौशनी में ले आया

भटक रही थी मैं एहसास के अँधेरों में 
तेरा ख्याल मगर चाँदनी  में ले आया 

भले ही देर से लेकिन खुली तो हैं आँखे 
तेरा फरेब मुझे रौशनी में ले आया

सबब न पूछ तू   मुझसे मेरी उदासी की 
ये दर्द कौन मेरी ज़िंदगी में ले आया 

 दिलो ओ दिमाग़ पे हावी था एतबार तेरा 
तेरा यक़ीन मुझे गुमरही में ले आया 

हमारे ज़ख्मों को आखिर जुबान मिल ही गयी 
हमारा दर्द हमें शायरी में ले आया 

तेरा ही सबपे करम है  तेरी ही रहमत है 
तेरा ही नूर हमें रौशनी में ले आया 

भटक रही थी मैं एहसास के अँधेरों में 
तेरा ख्याल मुझे बंदगी में ले आया 

ज़रा सी बात थी लेकिन समझ न पायी सिया 
वो बदगुमानियाँ क्यूँ  दोस्ती में ले आया

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