Tuesday 21 April 2015

तेरी यादों का जब लश्कर गया है 
मेरे एहसास ज़ख़्मी कर गया है 

मेरी आँखों में छाई हैं उदासी 
कोई सपना अचानक  मर गया है 

नमी आँखों की जाती ही नहीं है
 तेरा ग़म दिल में ही घर कर गया है 

कोई सतही चुभन लगती नहीं ये  
ये कांटा रूह के अंदर गया है 

मुझे रास आयी न दुनिया फ़रेबी 
वफ़ाओं से मेरा दिल डर गया है 

कोई ताजा हवा का एक  झोंका 
मेरे एहसास को छूकर गया है 

गुनाहों पर पड़ा है  तेरे पर्दा
हर इक इल्ज़ाम मेरे सर गया है 



  

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