Saturday 2 April 2016

जीवन है काँटों का बिछौना
कितना मुश्किल इस पर सोना
उसने जब जी चाहा खेला
दिल को मेरे जान खिलौना
जाओगे या साथ रहोगे !
कुछ तो अपना मूंह खोलो ना !
ज़ालिम प्यार का यहीं नतीजा
दुःख पाना है सुख है खोना
आँसू , आहें और तन्हाई
हिज्र की शब में और क्या होना
ख़ुद ही रस्ता कट जाएगा
तुम भी मेरे साथ चलो ना !
मुझसे एक सहेली बोली
दिल में ख़्वाहिश को मत बोना
सिया ढूँढती हो क्यों कांधा
अच्छा होगा तन्हा रोना
siya

3 comments:

  1. सौंदर्य पूर्ण काव्य है आपका,
    आपके शब्द आकाश के ध्रुव तारे जैसे हैं

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  3. किन राहों में आकर हम भटक गए है
    उसकी आवाज सुनने को भी तरस गए है
    मेरा आंगन अब तक है सुखा
    लोग कहते है बादल बरस गए है
    जाने कोंन सी पागल थी बो घडी
    मेरे सामने ही जब बो थी खड़ी
    उसको मालूम भी तो हुआ ही नहीं
    दिल कितने दीवाने धड़क गए है
    बही करते है उसका इंतजार
    जहा देखा था उसे पहली बार
    अब तो मालूम हमको रहा ही नहीं
    http://somewordsfrommyheart.blogspot.in/2010_09_20_archive.html

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