Saturday 13 August 2016

योमे आज़ादी के मौके पर एक अदना सी काविश

किस तरह कहदे की अब आज़ाद हम 
शाद होना था मगर नाशाद है हम 

जश्न ए आज़ादी पे क्या खुशियां मनाये 
 खोखली होती हुई  बुनियाद है हम 

ख़ौफ़ के साये में कैसे जी रहे हैं 
किस तरह कहदे  अभी आबाद है हम 

देशभक्तों ने किये बलिदान थे जो पूछते है आज वो क्या याद हैं हम।


लुट रही  हैं इज़्ज़ते  बेटी बहन की 
अनसुनी जैसे कोई फ़रियाद है हम 

बेटियों को फैसलों का हक़ नहीं  हैं 
क़ैद रक्खा हैं उन्हें सय्याद है हम 

लड़ रहे हैं मज़हबों के नाम पर सब 
फूट आपस में हैं और बर्बाद है हम 

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