-दम उसकी झूठी मोहब्बत का भर रही हूँ मैं
खुद अपने आप को बर्बाद कर रही हूँ मैं
मेरी उड़ान मुझे कर न दें कहीं गुमराह
खुद अपनी सोच के ही पर कतर रही हूँ मैं
मेरी अना की गया है वो किर्चियां करके
चुभन सी हर घड़ी महसूस कर रही हूँ मैं
यक़ीन प्यार का अब आँधियों की जद में हैं
मुझे संभाल लो आकर बिखर रही हूँ मैं
मैं अपने क़दमों की आहट भी सुन नहीं पाती
ख़ुदा ही जाने कहाँ से गुज़र रही हूँ मैं
तेरे ख़ुलूस ने इतना किया मुझे मोहतात
खुद अपने जिस्म के साये से डर रही हूँ मैं
शदीद धूप मेरे सर पे ग़म की है लेकिन
इस इम्तेहां की तपिश में निखर रही हूँ मैं
इस इम्तेहां की तपिश में निखर रही हूँ मैं
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लगाओ अब मेरी कमज़ोरियों का अंदाज़ा
जो वादा करके भी तुमसे मुकर रही हूँ मैं
मेरी हयात में दो चार लम्हे बाक़ी है
ठहर जा मौत ज़रा सा संवर रही हूँ मैं
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