मसाइब हमसफ़र रहते हैं मेरे
मरासिम दर्द से ग़हरे हैं मेरे
कोई जब पोंछने वाला नहीं है
तो फिर ये अश्क़ क्यों बहते है मेरे
सभी रस्ते हुए मसदूद जब तो
तेरी जानिब क़दम उट्ठे हैं मेरे
मुझे ग़ैरों से कब शिकवा है कोई
मुख़ालिफ़ आज तो अपने हैं मेरे
नहीं आती मुझे तख़रीब कारी
नज़रिये आपसे अच्छे है मेरे
कहा उसने सिया साँसो पे तेरी
तेरी हर फ़िक्र पर पहरे मेरे
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