Sunday 7 May 2017

अब ज़रा चैन से जिया जाए

क्या कहा जाए क्या सुना जाए
इससे बेहतर है चुप रहा जाए

तल्ख़ियों को भुला दिया जाए
अब ज़रा चैन से जिया जाए
कौन ढूंढें इलाज दर्दों का
ज़ायका ग़म का भी चखा जाए

ख़्वाब अश्कों में बह गए सारे
राख को भी बहा दिया जाए

मैं अधूरा सा इक फ़साना हूँ
क्यूँ मुक़म्मल मुझे पढ़ा जाए

तू नहीं तो तेरा तसव्वुर ही
दर्द ए दिल का मेरे बढ़ा जाए

मैं भी तनहा हूँ चाँद भी तनहा
क्यों न अब रात से मिला जाए

लम्हा उधड़ रही हूँ 'सिया '
वक़्त का पैरहन सिया जाए

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